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दलित और आरक्षण!

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आरक्षण की आवश्यकता सिर्फ सरकारी दाखिले य भर्ती से जुड़ा मुद्दा नहीं है, यह शोषित और वंचित तबके के सम्मान और प्रतिष्ठा के प्रतिमानो को भी तय करता है।

 हर सवर्ण लड़का/लड़की यह कहते हैं कि एससी, एसटी या ओबीसी के साथ बुरा हुआ तो इसमें हमारी गलती नहीं है, हमने उनके साथ बुरा नहीं किया, जो हजारों वर्षों से वंचित रहे उसकी सजा हमें क्यों मिल रही है?

यह सवाल करने से पहले हर व्यक्ति जो आरक्षण विरोधी है उसके मन में यह सवाल भी आना चाहिए कि आरक्षण की आवश्यकता क्यों है?

हमारा भारतीय समाज चार वर्णों में विभाजित है, इसमें अलग-अलग जातियां हैं। पदानुक्रम हर वर्ण की इज्जत ज्यादा और कम है और संपत्ति भी उसी के पास ज्यादा है जो उच्च वर्ग की श्रेणी में आता हैं। घटते क्रम में वर्णों की सम्मान प्रतिष्ठा में भी गिरावट है, सबसे निम्न श्रेणी यानी दलित जो अलग-अलग जातियों में विभाजित हैं उनकी स्थिति आज भी वैसे ही है जो स्वतंत्रता के पहले थी। आज भी सफाई कर्मचारी, धोबी, मोची सब दलित जाति से आते हैं, भारत के सीवरों में सफाई करने के लिए एक दलित ही घुसता है।

आज भी एक दलित बच्चा जब विद्यालय के मटके से पानी पी लेता है तो उसे इतना मारा जाता है कि उसकी मृत्यु हो जाती है। महिलाओं के साथ बलात्कार भारत में अब आम अपराध की श्रेणी में आ गया है। एनसीआबी के 2020 के आंकड़ों के अनुसार हर दिन देश में 77 लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते हैं और इनमें दलित महिलाएं ही सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।

गुजरात के सामाजिक कल्याण विभाग के उपनिदेशक रहे डॉ हसमुख परमार बताते हैं कि “दलित महिलाओं के सामने खतरा ज्यादा होता है, यह उनके जेंडर और सामाजिक हैसियत के चलते होता है और यह एक तरह से उनकी सामाजिक हत्या है।” नीता हार्दिकर बताती हैं कि “अनुसूचित जाति/जनजाति की महिलाओं की दूसरी महिलाओं की तुलना में सामाजिक हैसियत कितनी कम होती है, ये अपराध करने वाले जानते हैं और यह उनके दिमाग में होता है।” इसके उदाहरण उन्नाव रेप केस (4 जून 2017), हाथरस गैंगरेप केस और हत्या (14 सितम्बर 2020) और कुछ दिन पहले 14 सितम्बर को लखीमपुर खीरी में दो बहनों का गैंगरेप और हत्या। यह सारे अपराध जो हुए वह दलितों की समाज में इज्जत और प्रतिष्ठा की हीनता के कारण हुए।

एक सवर्ण व्यक्ति जिसके पास भले ही नौकरी नहीं है, बेरोजगार है, फिर भी समाज में उसकी प्रतिष्ठा उच्च है वह गुलामी भरी जिंदगी का वहन नहीं करता है।

आरक्षण भारतीय समाज में पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ समाज में दलितों/आदिवासियों की प्रतिष्ठा बढ़ाने का एक सहारा मात्र है क्योंकि भारतीय समाज में उसी की प्रतिष्ठा ज्यादा है जो शिक्षित है, धनवान है।

 व्यक्ति की जब भावनाएं आहत होती हैं, जब उनकी गरिमा, उनके सम्मान को ठेस पहुंचती है तो उनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। हाल के वर्षों में समाज के कमजोर तबके के साथ लगातार अपराध में बढ़ोत्तरी हुई हैं।

 अगर आरक्षण से सवर्ण का नुकसान है तो आप सुप्रीम कोर्ट, एम्स ,संसद भवन, राज्यों की विधानसभाओं, राज्य तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों और देश के सभी प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुसूचित जाति/ जनजाति की पदों की संख्या से पता लगा सकते हैं।

प्रगति यादव पेशे से स्वतंत्र पत्रकार हैं, और यह उनके निजी विचार।

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