90 के दशक में उभरा अयोध्या विवाद एक ऐसा धार्मिक मुद्दा था। जिसने देश की पूरी राजनीति को ही बदल कर रख दिया। इस विवाद की वजह से जो लोग सदियों से भाईचारे से रहते आ रहे थे। उनके बीच भी दरार पैदा हो गई थी। देश में कई जगह हिंसा के मामले सामने आए। जिनमे कई लोगों को अपना जीवन गंवाना पड़ा। आखिरकार इस विवाद का अंत देश की सर्व्वोच अदालत के जरिए हुआ।
इस विवाद ने जहां लोगों के दिलों में जख्म दिए। तो वहीं विवाद से जुड़े पैरोकार हाशिम अंसारी और महंत रामचंद्र परमहंस की दोस्ती ने इन जख्मों पर मरहम का काम किया। हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद के पैरोकार थे तो वहीं परमहंस रामचंद्र दास राम मंदिर के। दोनों के बीच वैचारिक लड़ाई जरूर थी। लेकिन दोस्ती का रिश्ता भी अटूट था। दोनों अदालत एक ही रिक्शे पर साथ जाया करते थे। उनके वकील जहां अदालत में एक-दूसरे के खिलाफ जमकर जिरह कर रहे होते। तो वे सुनवाई में देरी होने पर अदालत परिसर में दोनों साथ चाय पीते हुए दिखाई देते। अदालत परिसर में हर कोई उनके सौहार्द को देखकर चौंक जाता था। सुनवाई के बाद शाम को दोनों हँसते-मुसकुराते साथ वापस घर लौट जाया करते थे।
आज दोनों ही इस दुनिया में नहीं है। लेकिन उनकी दोस्ती सांप्रदायिक सोहार्द की मिसाल है। जिससे आत्मसात करने की जरूरत है। जब परमहंस रामचंद्र दास का निधन हुआ तो हाशिम अंसारी बेहद परेशान हो गए थे। वह पूरी रात रामचंद्र दास के शव के पास ही रहे। अंतिम संस्कार के बाद ही उन्होने अन्न धारण किया था। इस दौरान वे फूट-फूट कर रोए थे।
हाशिम के बेटे इकबाल अंसारी कहते है कि ‘उनके पिता ने 6 दशकों तक मुकदमे की पैरवी की। लेकिन कभी हिंदुओं के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। वे सपरिवार होली-दिवाली पर अपने हिन्दू दोस्तों के घर जाते थे।‘
सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी महेंद्र नाथ बताते है कि “अयोध्या विवाद के कारण जब देश में सांप्रदायिक हिंसा हो रही थी। तब भी दोनों के बीच कड़वाहट नहीं आई। दोनों ने मिलकर हिंसा की आलोचना की। जब हिंदुओं के द्वारा हाशिम अंसारी के घर पर हमला हुआ था। तो वे बेहद दुखी हुए थे। हालांकि अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को बचा लिया था।”