बिहार में उर्दू आज के समय में केवल कुछ जगहों पर ही बोली जा रहीं हैं। जबकि उर्दू की शुरुआत हिंदुस्तान से ही हुई थी जिसे महात्मा गांधी द्वारा भी सराहा जाता रहा था। लेकिन आज के दौर में उर्दू बोलने का चलन अब ख़त्म होने के कगार पर है।
“अख़्तर ओरेनवी: बिहार में उर्दू साहित्य के निर्माता” शीर्षक से बिहार के रहने वाले युवा लेखक सय्यद अमजद हुसैन बताते हैं ‘अख़्तर ओरेनवी ने मौत और ज़िन्दगी के जंग के दौरान भी उर्दू कहानी और शायरी लिखना नहीं छोड़ा था और हम आज के लोग सही सलामत होते हुए भी उर्दू ज़बान को तवज्जो नहीं दे रहे हैं।’
अमजद बताते हैं उनके घर में अक्सर ओरेनवी और उनके छोटे भाई सय्यद फ़ज़ल अहमद की बातें अक्सर होते रहती थी जिसकी वजह कर अमजद ने ओरेनवी के बारे में और जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया और जब सारी जानकारी इकट्ठा हो गई तब उन्होंने सोचा की उनकी जीवनी पर एक पुस्तक ही लिखा जाना चाहिए क्यूँकि ओरेनवी हमारे इतिहास के पन्नों में तो ज़िंदा है लेकिन हमारे दिलों और ज़ेहन से भूलें जा रहे हैं।
ओरेनवी के भांजे आज के दौर में रोशन सेठ और आफ़ताब सेठ जैसे लोग हैं, उनके चाचा मुंगेर ज़िला के कुछ बैरिस्टरों में एक थे। उनकी पत्नी भी लेखिका थीं। उनके भाई भारतीय पुलिस सेवा में जनरल आईजी हुए थे, पिता धार्मिक इंसान थे।