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इमाम का जनाज़े से इंकार और उसके पीछे की सच्चाई.

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नई दिल्ली: 23 जुलाई 2024 को मुरादाबाद मंडल के कुंदरकी के रहने वाले लोकल भाजपा नेता अलिदाद खान की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो जाती है. जनाज़े की नमाज़ पढ़वाने के लिए मृतक अलीदाद बीटा नवाज़ खान मस्जिद के इमाम के पास जाता है, और नमाज़ पढ़ाने के लिए बोलता है. मस्जिद के इमाम मोहम्मद राशिद ने जनाज़े की नमाज़ पढ़ाने से इंकार कर देते हैं.

मृतक के परिवार की शिकायत

मृतक के परिवार ने इससे आहत होकर 31 जुलाई को डीएम को एप्लीकेशन दी, साथ ही इमाम सहित 5 अन्य लोगों पर FIR दर्ज कराई. FIR में मृतक के परिवार ने ये आरोप लगाया की मेरे पिता और मेरा परिवार भाजपा का समर्थन करते थे, इसी वजह से इमाम ने मेरे पिता के जनाज़े की नमाज़ नहीं पढ़ाई. बता दें कि मृतक अलीदाद का परिवार काफी दिनों से भाजपा से जुड़ा हुआ है. 2022 के पंचायत चुनावों में अलीदाद के भतीजे रिजवान ने वार्ड सदस्य का चुनाव बीजेपी के टिकट पर ही लड़ा था. हालांकि रिजवान चुनाव हार गए. पार्टी की बैठकों में अलीदाद और उनके बेटे दिलनवाज नजर आते थे. ऐसे में दिलनवाज ने कहा कि हिंदूवादी पार्टी को वोट देने की वजह से उनके पिता की मौत पर इमाम ने जनाजे की नमाज पढ़ने से इंकार कर दिया. इसके बाद दूसरे इमाम से जनाजे की नमाज पढ़वाई गई.

पूरे मामले पर इमाम ने क्या कहा?

इस पूरे मामले पर मस्जिद के इमाम मोहम्मद राशिद ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा की मेरे इल्म में ऐसी कोई बात थी ही नहीं, इन्होने बेवजह का मुद्दा बनाया. हकीकत ये है की उनकी जनाज़े की नमाज़ उसी मस्जिद में अदा की गयी, और उन्हीं के घर के व्यक्ति नमाज़ पढ़ाई, यह सारा प्रकरण मस्जिद के कैमरे में दर्ज है. ये बेवजह का मामला है, किसी को नीचा दिखाने, और मुझे फंसाने के लिए ये सब किया जा रहा है. बीजेपी को वोट देना, सपोर्ट करना ये बेकार का मुद्दा है. ये कोई सियासी मामला नहीं, बल्कि धार्मिक मामला है. मृतक की नमाज़े जनाज़ा में हम इसलिए शामिल नहीं हुए क्योंकि वे हमारे नबी की शान में गुस्ताखियाँ करते थे. मृतक अलिदाद हमेशा से यह कहते थे की हम किसी नबी को नहीं मानते, अगर कोई धर्म के खिलाफ बयानबाजी करे या आस्था को ठेस पहुंचाएगा तो कौन उसके जनाज़े में शामिल होगा.

इस्लाम क्या कहता है गुस्ताखे रसूल के जनाज़े पर?

इस मामले पर हमने इस्लामिक स्कॉलर मौलाना हमदान मरकज़ी से बात की तो उन्होंने बताया की “इमाम मोहम्मद राशिद साहब ने गुस्ताखे रसूल की नमाज़े जनाज़ा ना पढ़ाकर बहुत अच्छा किया है. आगे मौलाना हमदान मरकज़ी इमाम अहमद रज़ा खान, आला हज़रत की किताब हुस्सामुल हरमैन का हवाला देते हुए बताते हैं की आला हज़रत ने हुस्सामुल हरमैन के पेज नंबर 32 से लेकर 50 तक इन्हीं सब मसलों पर रौशनी डाली है, किताब में लिखा है की तमाम बातिल फिरके जैसे देवबंदी, वहाबी, क़ादियानी, राफज़ी, अहले हदीस ये अपनी कुफ़्री अक़ाईद-ओ-नज़रियात ज़रूरीयात ए दीन का इनकार करने की बुनियाद पर काफिर और मुर्तद हैं. आगे आला हज़रत की किताब का हवाला देते हुए मौलाना हमदान बताते हैं की इनके कुफ्र में शक करने वाला भी काफिर है. और काफिर, मुर्तद की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना ये जानकर की ये काफिर और मुर्तद है तो नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने वाला भी काफिर हो जाएगा. यदि नमाज़ पढ़ाने वाले इमाम का निकाह हुआ है तो उसको महर के साथ दोबारा निकाह पढ़वाना पड़ेगा, साथ ही अगर वे किसी से मुरीद है तो उसको दोबारा मुरीद होना पड़ेगा, ये उस व्यक्ति के ऊपर ज़रूरी हो जाता है.

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