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दरगाह आला हज़रत: एक शिकायत और सुधार।

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भारत में मुसलमानों की सबसे बड़ी तादाद सुन्नी मुसलमानों की है, जिन्हें अहले सुन्नत वल जमात भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे बरेलवी मसलक के नाम से भी पहचानते हैं, जो कोई नया मसलक नहीं है, बल्कि वही है जिसे 1400 साल पहले नबी-ए-करीम (ﷺ) ने शुरू किया था। इस मसलक से जुड़े बहुत से लोग खुद को सूफी भी मानते हैं।

लेकिन, इतनी बड़ी तादाद के बावजूद, अहले सुन्नत वल जमात का समुदाय प्रगति के मामले में अन्य जमातों से पीछे रह गया है। जहां दूसरी जमातें बड़े संगठन बना रही हैं, स्कूल और कॉलेज स्थापित कर रही हैं, वहीं बरेलवी मसलक (अहले सुन्नत वल जमात) आज भी अपनी जगह ठहरा हुआ है। 

विशेष रूप से दरगाह आला हज़रत की बात करें तो अब तक दरगाह की कोई आधिकारिक वेबसाइट नहीं है। लोग दरगाह से जारी किए गए बयानों और फतवों के बारे में जानने के लिए संघर्ष करते हैं। फतवा देना यकीनन एक महत्वपूर्ण दीनी काम है, लेकिन आज के डिजिटल युग में, जब हर किसी के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट है, क्या यह उचित नहीं होता कि दरगाह एक आधिकारिक वेबसाइट बनाती जो फतवों और बयानों को ऑनलाइन उपलब्ध कराती? अन्य जमातें टेक्नोलॉजी के मामले में काफी आगे निकल चुकी हैं, लेकिन अहले सुन्नत वल जमात अभी भी इस क्षेत्र में पीछे है।

अब तक दरगाह आला हज़रत से जुड़ा कोई छात्र संगठन भी स्थापित नहीं किया गया है। हमें यह भी नहीं पता कि दरगाह का आधिकारिक प्रवक्ता कौन है। साथ ही, दरगाह का आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट (फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर) भी मौजूद नहीं है। जब भारत में मुस्लिम समाज से जुड़े महत्वपूर्ण मसले सामने आते हैं, तो बरेलवी जमात का उस पर क्या रुख होता है, यह जानने का कोई आधिकारिक साधन नहीं है। उदाहरण के तौर पर, आज से 5 साल बाद जब कोई व्यक्ति वक्फ बिल पर बरेलवी जमात का स्टैंड जानने के लिए सर्च करेगा, तो क्या पाएगा? कुछ भी नहीं। ऐसा नहीं है कि जमात स्टैंड नहीं लेती, बल्कि यह जानकारी लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया अधूरी है।

हाल ही में, जब मैंने ईद मिलादुन्नबी के बारे में कुछ सर्च किया, तो मुझे देओबंद की वेबसाइट पर एक फतवा मिला, जिसमें गलत बातें लिखी थीं। हमारे पास ऐसे कई बड़े आलिम मौजूद हैं, जो बातिल विचारधाराओं का मुकाबला कर सकते हैं, लेकिन जब टेक्नोलॉजी का मामला आता है, तो हम पिछड़ जाते हैं। अगर हमारे पास एक आधिकारिक वेबसाइट होती, तो देओबंद की वेबसाइट की जगह हमारी वेबसाइट टॉप पर क्यों नहीं आती? वेबसाइट को टॉप रैंक कराने के लिए SEO (सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन) विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। क्या इतनी बड़ी जमात के पास एक SEO विशेषज्ञ भी नहीं है?

कुछ दिन पहले, एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि इस्लामी मसलों को इंटरनेट पर सर्च न करें, क्योंकि गूगल यहूदियों के नियंत्रण में है और वह बदअकीदों के नतीजे ही दिखाता है। यह सोच गलत है। आर्टिकल्स को रैंक कराने के लिए सही SEO तकनीकों की ज़रूरत होती है, और यदि हमारे पास सही विशेषज्ञ होते, तो हम अपनी वेबसाइट को भी टॉप पर ला सकते थे। हर समस्या के लिए दूसरों को दोष देने की बजाय, हमें खुद को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने की ज़रूरत है।

जब बरेलवी मसलक से जुड़े संगठनों की बात आती है, तो सबसे पहला नाम ‘जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा’ का आता है। इसे इमाम अहमद रज़ा खान ने 1920 में स्थापित किया था, लेकिन 100 साल से अधिक समय के बाद भी यह संगठन बरेली के अलावा कुछ चुनिन्दा शहरों तक ही सीमित है। समाज में इसे पहचानने वाले बहुत कम लोग मिलेंगे। कुछ लोग कहते हैं कि यह राजनीतिक संगठन नहीं है, पर यह तो एक सामाजिक संगठन है, फिर समाज के लिए इसका योगदान क्यों नहीं दिखता? कब तक वही पुराने इस्लामी पोस्टर चिपकाए जाएंगे?

हालांकि, एक बात स्पष्ट है कि जब भी नामूसे रिसालत (नबी की शान की रक्षा) और औलिया अल्लाह की शान में गुस्ताखी की बात आती है, तो सबसे पहले बरेलवी जमात ही इसके खिलाफ मोर्चा खोलती है।

दरगाह आला हज़रत और इससे जुड़े लोगों को आधुनिक तकनीकों को अपनाने की ज़रूरत है। हमें न केवल धार्मिक मामलों में, बल्कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में भी सक्षम बनना होगा। यही समय की मांग है। 

Sahil Razvi, whose real name is Mohd Sahil, pursued his engineering degree from Jamia Millia Islamia and Maharshi Dayanand University. However, despite holding an engineering background, his true passion lay in journalism. Following this passion, he began…

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