शुक्रवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में एक भूमि का आवंटन रोक दिया, जहां पिछले महीने कई मुस्लिम धार्मिक स्थल और घर तोड़े गए थे। यह फैसला औलिया-ए-दीन समिति की एक याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें विध्वंस के दौरान यथास्थिति बनाए रखने से इनकार किया गया था।
जस्टिस बी.आर. गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने किसी भी अंतरिम आदेश को जारी करने से इनकार कर दिया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को भरोसा दिया कि भूमि राज्य के नियंत्रण में रहेगी और इसे किसी तीसरे पक्ष को नहीं दिया जाएगा। कोर्ट ने कहा, “इस स्थिति में हमें कोई अंतरिम आदेश देने की जरूरत नहीं लगती।”
ये विध्वंस 28 सितंबर को हुए थे, जब जिला अधिकारियों ने प्रभास पाटन क्षेत्र में नौ मस्जिदों, दरगाहों और कई घरों को सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के नाम पर गिरा दिया था। इसके बाद, सुम्मस्त पटनी मुस्लिम जमात ने इन विध्वंसों को अवैध बताते हुए अवमानना याचिका दायर की।
सुनवाई के दौरान, औलिया-ए-दीन समिति के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह जमीन 1903 से समिति के नाम पर दर्ज है और मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के अधिनियम 2013 के तहत संरक्षित है। सिब्बल ने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने मुस्लिम संपत्तियों को गिराया, लेकिन उसी जमीन पर बने हिंदू मंदिरों को नहीं छुआ। उन्होंने इस कार्रवाई को “दमनकारी” और कानूनी अधिकारों की अनदेखी बताया।
इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया कि वर्तमान में इस भूमि का अधिकार सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के पास है और राज्य का अवैध निर्माणों को हटाने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई 11 नवंबर को तय की है और तब तक जमीन राज्य के पास ही रहेगी। इस दौरान उच्च न्यायालय में चल रही कार्यवाही भी जारी रहेगी।
गौर करने वाली बात है कि भारत में हाल के वर्षों में दंडात्मक विध्वंस के मामले बढ़े हैं, खासकर भाजपा-शासित राज्यों में। एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2022 से जून 2022 के बीच, भाजपा शासित राज्यों और एक आम आदमी पार्टी-शासित राज्य में 128 संरचनाएं तोड़ी गईं, जिनमें से अधिकांश मुसलमानों की थीं।