जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अमीर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि कलात्मक अभिव्यक्ति विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम है, जो आध्यात्मिक, नैतिक और सौंदर्यात्मक मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। यह विचार उन्होंने इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओ) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अल-नूर साहित्य महोत्सव के समापन सत्र में व्यक्त किए। महोत्सव का मुख्य विषय था “कला, साहित्य और इस्लामी सभ्यता”।
कला का नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने अपने संबोधन में उदाहरण देते हुए कहा कि यदि किसी स्थान पर गरीबों के मकान तोड़कर भव्य शॉपिंग मॉल बनाया जाए, तो इसे कला का उत्कृष्ट नमूना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों से विहीन है। उन्होंने इस्लाम में सौंदर्यशास्त्र के महत्व को रेखांकित करते हुए पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की हदीस, “अल्लाह सुंदर है और सुंदरता को पसंद करता है,” का उल्लेख किया।
कलाकारों से नई सभ्यता के निर्माण का आह्वान
हुसैनी ने कलाकारों और साहित्यकारों को संबोधित करते हुए कहा कि उनके पास समाज को बदलने और एक नई सभ्यता के निर्माण का अद्भुत माध्यम है। उन्होंने बगदाद के बुद्धिमता भवन और अल्लामा इक़बाल की कविताओं का उल्लेख करते हुए उनके ऐतिहासिक योगदान पर जोर दिया।
साहित्य महोत्सव की विविधताएं
देश के विभिन्न हिस्सों से आए 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों और 120 से अधिक अतिथियों ने इस महोत्सव में भाग लिया। इस कार्यक्रम ने कला, साहित्य और दर्शन के विविध पहलुओं को उजागर किया। समापन सत्र में गायक डॉ. हैदर सैफी के नग़मों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उपन्यासकार डॉ. खालिद जावेद ने अस्तित्ववाद और कथा साहित्य पर चर्चा करते हुए अपने उपन्यास “नेमत खाना” के गहरे संदेशों को समझाया। उन्होंने बताया कि उनका लेखन इब्न-ए-सफी के साहित्य से प्रेरित है।
मुस्लिम राजनीति और सामाजिक न्याय पर चर्चा
“द मुस्लिम क्वेस्ट फॉर जस्टिस एंड पॉलिटिकल एजेंसी” पर मलिक मोअतसिम खान और अख्तर उल ईमान ने भारतीय राजनीति में मुसलमानों की चुनौतियों और न्याय की कमी पर प्रकाश डाला। वहीं, डॉ. ब्रह्म प्रकाश सिंह ने हिंदू धर्म में हिंसा और नफरत की प्रवृत्तियों पर अपने विचार साझा किए।
प्रतिरोध और मीडिया पर संवाद
सीएए आंदोलन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री और भारतीय मुसलमानों के प्रतिरोध पर पैनल चर्चाएं हुईं। शरजील उस्मानी, वर्धा बेग और अन्य वक्ताओं ने इस विषय पर गहराई से चर्चा की। वहीं, मीडिया में मुसलमानों के चित्रण पर आदित्य मेनन, अली शान जाफरी और सलमान अहमद ने अपने विचार रखे।
सांस्कृतिक और साहित्यिक आदान-प्रदान
कार्यक्रम में कविताएं, संगीत और इस्लामी सभ्यता के विभिन्न पहलुओं पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं। नई प्रकाशित पुस्तकों के स्टॉल और विभिन्न व्यंजनों के स्टॉल ने भी दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।
महोत्सव का समापन और भविष्य की योजनाएं
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. रोशन मुहीउद्दीन ने महोत्सव को साहित्य, कला और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को नई दिशा देने वाला बताया। समापन पर एसआईओ के अध्यक्ष रामिस ई.के. ने भविष्य में और बड़े आयोजनों का वादा किया। तीन दिवसीय महोत्सव ने युवाओं को प्रेरित करते हुए उनके विचारों और दृष्टिकोण को समृद्ध किया।
अल-नूर साहित्य महोत्सव ने साहित्य और कला को नई पीढ़ी से जोड़ते हुए उन्हें एक नया मंच प्रदान किया और समाज में सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास के नए आयाम प्रस्तुत किए।