Opinion

इजराइल की चालबाजियां और फिलिस्तीन का संघर्ष: समझौते या धोखे का नया अध्याय?

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यहूदियों का ये हरक़त कोई नई बात नहीं है बल्कि ये तो उनकी पुरानी चतुराई है। इजराइल पहले भी ये हरक़त कर चुका है और ये बात जानते हुए भी दुश्मन-ए-इस्लाम से समझौता किया गया जाना मेरे नजरों में एक बेवकूफी भरा फ़ैसला है। वजह क्योंकि चोर “चोरी” करने के बाद कभी ये नहीं कहता कि मैंने ही चोरी की है चाहे फिर उस चोर के खिलाफ़ हमारे पास कितनी भी सबूत क्यूँ ना हो।यहां तक कि चोर उन सबूतों को कभी नहीं मानता चोर अपने बचाव में हर वो पहल करता है जो नामुमकिन को मुमकिन कर दें ताकि उसके खिलाफ जितने भी सबूत हो वो पूरी तरह से मिटा दिया जाए या फिर मिटाने देने की कोशिश करता ही हैं।

खैर यहां पर मिटा देने से मुराद आज गाज़ा में जो बचे कूचे फिलीस्तीनी मुसलमान है उन्हीं लोगों को लेकर कहीं जा रही है। भाला ये कैसी ख़ुशी का पल है कैसी जश्न-ए-आजादी है और कैसा जीत वा समझौता हुआ जब दुश्मन अपने हरकतों से बाज ही नहीं आ रहा है। बल्कि देखा जाए तो एक सिरे पर समझौते की बात कही जा रही है तो दूसरी तरफ उसी मुआहिदे के ख़िलाफ़ जाकर बेगुनाह फ़िलीस्तीनयों के ऊपर हमले जारी है।

फिर ये कैसा समझौता हुआ ये तो ख़िलाफ़-वर्ज़ी हुआ ना या फिर मान लिया जाए कि इज़राइलियों के लिए ये मुआहिदा सिर्फ़ एक काग़ज़ी था। तभी तो एक तरफ एलान होता है तो दूसरी तरफ जंग जारी रहती है बेगुनाह नागरिकों का कत्लेआम जारी रहती है फिर ये किस तरह का समझौता हुआ ये कैसा मुआहिदा है जबकि सामने वाला शख्स अभी भी हमारे खून के प्यासे है।

अब एक ही सवाल रह जाती है कि इज़राइल जब फ़िलीस्तीनयों को पूरी तरह से फ़िलीस्तीन से खत्म कर देगे तो ये “हमास” के मुजाहिदीन क्या कर लेगे उस वक़्त जब एक भी फ़िलीस्तीनी मुसलमान फ़िलीस्तीन में बचेगा ही नहीं तो। क्योंकि में यही समझती हूं कि कोई भी संगठन हो या फिर “तंजीम” इनका वज़ूद आवाम के होने से होती है आवाम के रहने से ही संगठनों का हक़ीक़ी ताक़त मिलती है और आवाम के होने से ही संगठन का वज़ूद क़ायम दायम रहती है। अगर “आवाम” ही ना रहें है तो फिर कोई तंजीम “संगठन” का होकर भी ना होने की वजह बन जाती है।

देखिये इजराइल का अब तक का जो मक़सद रहा है कि वो ग्रेट इज़राइल बनाने के लिए ये सब कर रहा है तो सिर्फ यही एक बात नहीं है बल्कि इजराइल सिर्फ़ ग्रेट इज़राइल ही बनाना नहीं चाहता है क्योंकि ग्रेट इज़राइल के मायने सिर्फ अरब मुस्लिम मुमालिको के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा करना ही नहीं है बल्कि दर हक़ीक़त उन हिस्सों से मुसलमानों को पूरी तरह से खत्म करना भी शामिल है।

और इस चीज को आप अच्छे से तब समझेंगे जब आप 1947-1948 और 1967 से लेकर अब तक की पूरी तारीख़ इतिहास उठा कर देख ना लें, क्योंकि यहूदियों का असल “हदफ़” ही फ़िलीस्तीनयों को खत्म करने का था और ये काम इज़राइल 1967 से बखूबी अंजाम देते आ रहा है। और देखा जाए तो इजराइल आज तक हमास से सीधा जंग नहीं कर पाया यहा तक कि जमीनी सूरत में वो बिल्कुल फेल साबित हुआ है।

दरअसल इज़राइल का टार्गेट हमास या हिज्बुल्लाह के मुजाहिद्दीन कभी रहा ही नहीं अगर ऐसा होता तो इज़राइल फ्रंट पर रह कर ईन दोनों से सीधा मुकाबला करते नाकि फिलिस्तीन वा गाज़ा के बेगुनाह नागरिकों औरते बच्चों पर हमला करते हुए नजर नहीं आता। क्योंकि इज़राइल का मकसद साफ है मुजाहिद्दीन बनने से पहले ईन बच्चों को मार दो नहीं तो आगे चलकर ये मुजाहिद बन गए तो कल यहूदियों को फिलिस्तीन से निकाल फेंकेगे।

और में इसी चीज को अब तक देख रही हूँ वर्षों से ये जंग ज़ालिम के हक़ में ही रहा है किसी मुजाहिदीन के हक़ में आया ही नहीं है बल्कि उल्टा वो खुद जालिमों के शिकार होते आ रहे हैं और आज भी हो रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि शहीद ज्यादातर “पियाजे” ही हो रहे हैं। क्यूंकि शतरंज में पियाजे को बैठा कर रखा नहीं जा सकता है अगर ऊंटनी या किसी और बड़े को बाहर निकालना है तो एक कदम पियाजे को आगे बढ़ाना ही पड़ता है।

दर हक़ीक़त आज देखा जाए तो ये कह सकते हैं कि फ़िलीस्तीन का ज़मी भी एक शतरंज का मैदान बन गया है एक मुहाने पर यहूदी बैठा है जो अपनी चतुराई में बहुत माहिर है और दूसरी तरफ हमास है जो जंग को जंग के तरह देख रहा है किसी बेगुनाह नागरिकों को बेवजह निशाना नहीं बना रहा है। लेकिन यहूदी इज़राइल अपने पियाजे को बैठाएं हुए हैं और अपने पियाजों के बचाव में अपने घोड़े को आगे कर रखा है और उस घोड़े के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ़ दूसरे तरफ के पियाजे हैं और ये पियाजे और कोई नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ फिलिस्तीन के मुसलमान है।

इसलिए इज़राइल द्वारा एक और नई चाल फ़िलीस्तीनयों के खिलाफ़ चल दी गई है ये समझौता बस नाम का है इज़राइल अपनी हरकतों से कभी भी बाज नहीं आने वाला है जो कल तक हमास को मिटाने देने की कसम खाने वाले बेंजामिन नेतन्याहू इतनी जल्दी अपने घुटने के बल कैसे आ गया सोचने और समझने वाली बात है क्योंकि कुफ्फार यहूदी ला एतबार।

(लेखिका यह अपने विचार हैं)

सय्यद मरियम लियाक़त हुसैन एक भारतीय इस्लामी विद्वान हैं। वह धार्मिक और रोज़मर्रा के मुद्दों पर लिखती हैं।

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