ओडिशा के बडलिया गांव में हाल ही में एक हृदयविदारक घटना सामने आई है। एक 65 वर्षीय महिला, मंद सोरेन ने अपने सात साल के पोते को 200 रुपये में एक दंपति को सौंप दिया, ताकि बच्चा खाने-पीने और शिक्षा का सहारा पा सके। महिला बेघर थी और उसके पास जमीन या सरकारी सहायता नहीं थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी, बेटा लापता था, और कोविड-19 महामारी में उसकी बहू का भी निधन हो गया था। इस वजह से वह पोते की देखभाल करने में असमर्थ थी।
पुलिस की जानकारी के अनुसार, मंद ने बच्चे को बेचने के बजाय, एक ऐसे परिवार को सौंपा जो उसे बेहतर जीवन दे सके। हालांकि, स्थानीय लोगों की शिकायत पर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और बच्चे को बचाकर बाल संरक्षण केंद्र में भेज दिया। अधिकारियों ने कहा कि महिला को सरकारी पेंशन और आवास सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा।
देश में ऐसी ही अन्य घटनाएं
यह एकमात्र मामला नहीं है जहां गरीबी ने माताओं को अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर किया है। पिछले साल मई में त्रिपुरा की 39 वर्षीय मोरमती ने अपनी नवजात बेटी को 5,000 रुपये में बेच दिया था। उसके पति की आत्महत्या के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति टूट गई थी। इसी तरह, ओडिशा की करमी मुर्मू ने 2023 में अपनी आठ महीने की बेटी को महज 800 रुपये में एक दंपति को सौंप दिया था। उसका पति दक्षिण भारत में मजदूरी कर रहा था, और उसे दूसरी बेटी के पालन-पोषण का बोझ नहीं उठाना था।
इन घटनाओं ने सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की कमजोरियों पर सवाल खड़े किए हैं, जहां गरीब परिवार आपातकालीन स्थितियों में सहायता के बिना अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हो जाते हैं। अधिकारियों का कहना है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए सरकारी योजनाओं के निर्वहन पर निगरानी बढ़ाई जाएगी।