मुसलमानों की कांग्रेस से बहुत बड़ी या अव्यावहारिक उम्मीदें नहीं हैं, लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता उन मुद्दों पर सक्रिय क्यों नहीं होते जो मुस्लिम समाज के दिल से जुड़े हैं?
नजीब की मां से लेकर पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन तक, इन मामलों में कांग्रेस नेतृत्व की अनुपस्थिति बेहद खलती है। इसी तरह, गुलफिशां फातिमा, जो UAPA जैसे कठोर कानून में जेल में बंद हैं, उनके लिए कांग्रेस ने कब आवाज़ बुलंद की? यह वही कानून है जिसके संशोधन का पार्टी ने समर्थन भी किया था।
जहां-जहां बुलडोज़र चलाए गए, वहां कांग्रेस का स्थानीय कैडर भी नहीं दिखा। कई राज्यों में, जैसे मध्य प्रदेश, मुसलमान कांग्रेस को भरोसे के साथ वोट देते हैं, लेकिन कमलनाथ सरकार के दौरान अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन तक नियुक्त नहीं हुआ।
यह एक बड़ा विरोधाभास है, पार्टी मुसलमानों से दूरी बनाए रखती है, लेकिन उम्मीद करती है कि मुसलमान उसे वोट दें।
SIR की घोषणा के बाद कांग्रेस ने जमीन पर क्या कदम उठाए? प्रेस कॉन्फ्रेंस करना काफी नहीं। अगर नेतृत्व चुनाव आयोग का घेराव करने या बड़ा प्रदर्शन करने की घोषणा करता, तो माहौल न सिर्फ़ बनता बल्कि दबाव भी बनता। क्योंकि आज के भारत में सड़क की ताकत तय करती है कि कौन राजनीति में प्रभावी रहेगा।
UAPA, लिंचिंग, नफरती भाषण, बुलडोज़र, SIR—इन सभी मुद्दों पर विपक्ष का सक्रिय होना जरूरी था। लेकिन कांग्रेस ने न तो दिल्ली में जेलों की ओर मार्च किया और न ही उन युवाओं की प्रतीकात्मक पैरवी की, जो सालों से बिना ज़मानत बंद हैं।
कम-से-कम पार्टी का कैडर तो उन जगहों पर पहुंच सकता था जहां अत्याचार हो रहे हों, जहां गैरकानूनी कार्रवाई हो रही हो। लेकिन ऐसा शायद ही कहीं दिखाई दिया।
75 वर्षों में कांग्रेस ने अपने अखबारों और मीडिया चैनलों को मजबूत नहीं किया। दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के अपने-अपने अखबार, टीवी चैनल और मीडिया मशीनरी होती है।
कई राज्यों में मुसलमान ही वो समूह हैं जो कांग्रेस को बड़े पैमाने पर वोट देते हैं। इतना कि यूपी में हार के बाद राहुल गांधी को केरल की मुस्लिम बहुल सीट पर जाना पड़ा, क्योंकि वह “सुरक्षित” मानी जा रही थी। और दुखद यह है कि इसी समुदाय को लेकर अक्सर कांग्रेस के भीतर एक झिझक, दूरी और असहजता दिखाई देती है।
जब ABVP, बजरंग दल या VHP से जुड़े किसी व्यक्ति के यहां कोई समस्या होती है, तो उनके लोग तुरंत सक्रिय हो जाते हैं, सड़क पर उतरते हैं, प्रशासन से मिलते हैं, ज्ञापन तैयार करते हैं, पुलिस स्टेशन तक पहुंचते हैं। वे अपने समर्थकों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। कांग्रेस ऐसा क्यों नहीं कर पाती? उसे जितना समर्थन मिलता है, वह उससे कहीं कम काम करती है।
मुसलमानों ने कांग्रेस को हमेशा भरोसे के साथ वोट दिया। लेकिन यह रिश्ता एकतरफा नहीं होना चाहिए। अगर कांग्रेस सच में एक राष्ट्रीय विकल्प बनना चाहती है, तो उसे, ज़मीनी स्तर पर सक्रिय होना होगा, अपने कैडर को मजबूत करना होगा, पीड़ितों के साथ खड़ा होना होगा, और प्रतीकात्मक नहीं, वास्तविक राजनीतिक लड़ाई लड़नी होगी। अन्यथा, केवल चुनाव के वक्त की अपीलें और दिखावटी संवेदनशीलता लोगों को और निराश ही करेगी।
(शम्स-उर-रहमान अल्वी वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेख उनके एक्स प्रोफ़ाइल से लिया गया है और इसमें व्यक्त विचार पूरी तरह उनके व्यक्तिगत हैं।)















