राजस्थान की पहचान अक्सर रेगिस्तान, किलों और राजपूत वीरता से जोड़ी जाती है, पर इन सभी के पीछे जो मौन प्रहरी की तरह सदियों से खड़ा है, वह है अरावली पर्वतमाला। यह केवल पहाड़ों की एक श्रृंखला नहीं, बल्कि राजस्थान के इतिहास, लोककथाओं, भूगोल और पर्यावरण की रीढ़ है।
महाराणा प्रताप और अन्य सिसोदिया शासकों की गाथाएँ अरावली के बिना अधूरी हैं। हल्दीघाटी का युद्ध इसी पर्वतमाला की गोद में लड़ा गया। लोककथाओं में कहा जाता है कि अरावली की पहाड़ियों ने महाराणा प्रताप को शरण दी, रास्ते छिपाए और गुरिल्ला युद्ध में सहायता की।
कछवाहा राजाओं ने अरावली की पहाड़ियों पर अपने दुर्ग बसाए। भील और मीणा जनजातियों के गीतों में अरावली को माता के रूप में पूजा गया है जो जल, जंगल और जीवन देती है। कुछ कथाओं में अरावली को तपस्वियों और ऋषियों की साधना भूमि माना गया है, जहाँ ध्यान और ज्ञान की परंपरा विकसित हुई।
आज अरावली पर्वतमाला अवैध खनन, अतिक्रमण और जंगलों की कटाई के कारण गंभीर संकट में है। यदि इसे संरक्षित नहीं किया गया, तो जल संकट, बढ़ता तापमान और मरुस्थलीकरण अनिवार्य हो जाएगा।
अरावली को बचाना केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का प्रश्न है। अरावली पर्वतमाला राजस्थान की आत्मा है, उसकी वीरगाथाओं की साक्षी, उसकी लोकसंस्कृति की जननी, उसके भूगोल की संरक्षक और उसके पर्यावरण की रक्षक है।
अरावली के बिना न तो राजस्थान का अतीत समझा जा सकता है, न उसका वर्तमान और न ही उसका भविष्य सुरक्षित रह सकता है। यदि अरावली सुरक्षित है, तो राजस्थान सुरक्षित है।
(आँचल बवेजा स्वतंत्र लेखिका हैं, जो इतिहास, संस्कृति और पर्यावरण के सामाजिक-राजनीतिक महत्व पर लेखन करती हैं। व्यक्त विचार पूरी तरह उनके व्यक्तिगत हैं।)















