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महाकुंभ में इंसानियत की मिसाल: हिंदू श्रद्धालुओं की मदद को आगे आए मुसलमान, खोले मस्जिदों के दरवाजे।

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प्रयागराज में महाकुंभ (MahaKumbh) के दौरान एक बार फिर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिली। मौनी अमावस्या के अवसर पर 28-29 जनवरी की दरमियानी रात कुंभ मेले में भगदड़ मचने से कई श्रद्धालु मुश्किल में पड़ गए। अफरा-तफरी में कई लोग अपनों से बिछड़ गए, जबकि कुछ घायल हो गए। ऐसे कठिन समय में प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय ने आगे बढ़कर इंसानियत की मिसाल पेश की।

मस्जिदों और इमामबाड़ों के दरवाजे खोले

जब भगदड़ के बाद हजारों श्रद्धालु बिना ठिकाने और भोजन के सड़कों पर भटक रहे थे, तब स्थानीय मुसलमानों ने उनके लिए मस्जिदें, मजारें, दरगाहें और इमामबाड़े खोल दिए। जनसेनगंज रोड और अन्य 10 से अधिक इलाकों में मुसलमानों ने लगभग 25,000 से 26,000 श्रद्धालुओं को शरण दी। इसके अलावा, लोगों के लिए भोजन, दवा और कंबल की व्यवस्था की गई।

खुल्दाबाद सब्जी मंडी मस्जिद, बड़ा ताजिया इमामबाड़ा, हिम्मतगंज दरगाह और चौक मस्जिद समेत कई जगहों पर हिंदू श्रद्धालुओं को ठहराया गया। यह कदम इस बात का प्रमाण है कि प्रयागराज में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा आज भी मजबूत है।

2500 श्रद्धालुओं को बांटे गए कंबल

मुस्लिम समुदाय ने विशेष लंगर का आयोजन किया, जहां हिंदू श्रद्धालुओं को भोजन और गर्म चाय उपलब्ध करवाई गई। ठंड से बचाने के लिए 2500 से अधिक कंबल वितरित किए गए। यही नहीं, मुसलमान युवाओं ने रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड तक श्रद्धालुओं को सुरक्षित पहुंचाने में भी सहायता की।

स्थानीय मुसलमानों का कुंभ से जुड़ाव

प्रयागराज के मुसलमान हमेशा से कुंभ मेले को एक बड़े सामाजिक और धार्मिक आयोजन के रूप में देखते आए हैं। न केवल इस आयोजन से उन्हें रोजगार मिलता था, बल्कि श्रद्धालुओं की सेवा करने का भी अवसर मिलता था। इलाहाबादी होने का फख्र इस आयोजन से जुड़ा था, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग रही।

कुछ कट्टरपंथी साधु-संतों ने कुंभ में मुसलमानों के बहिष्कार का आह्वान किया, जिससे स्थानीय मुस्लिम व्यापारियों और श्रमिकों को कुंभ से अलग-थलग कर दिया गया। कई मुस्लिम दुकानदारों को दुकानें लगाने से रोका गया, और कुछ को धमकियां भी मिलीं। प्रशासन की ओर से भी इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

मुसलमानों ने नफरत को नकारा, मानवता को अपनाया

हालांकि, मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ की घटना के बाद मुसलमानों ने इन कट्टरपंथी फरमानों को दरकिनार कर जरूरतमंद श्रद्धालुओं की मदद के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। स्थानीय मुस्लिम युवाओं ने घायल श्रद्धालुओं को अपने घरों में पनाह दी, वहीं मुस्लिम डॉक्टरों ने घायलों के इलाज के लिए अपने क्लीनिक समर्पित कर दिए।

चौक स्थित जामा मस्जिद और खुल्दाबाद मस्जिद में भी श्रद्धालुओं के लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था की गई। कुछ मुस्लिम मोहल्लों में श्रद्धालुओं का स्वागत पुष्प वर्षा और रामनामी अंगवस्त्र भेंट करके किया गया, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना।

कुंभ में मुस्लिमों को अलग-थलग करने की कोशिश

इलाहाबाद के कई ब्लॉगर और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार, इस बार कुंभ मेले की व्यवस्था इस तरह की गई कि मुस्लिम बहुल इलाकों से श्रद्धालुओं का आवागमन लगभग न के बराबर रहा। अटाला, नुरुल्लाह रोड और अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से गुजरने वाले रास्तों को बंद कर दिया गया, जिससे स्थानीय मुस्लिम श्रमिकों—जैसे रिक्शा चालक, मजदूर, प्लंबर और अन्य व्यवसायियों—को आर्थिक नुकसान हुआ।

इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं

कुंभ में मुसलमानों की इस पहल ने यह साबित कर दिया कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। किसी भी आपदा या संकट की घड़ी में इंसानियत ही सबसे ऊपर होती है। प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय ने जिस तरह से नफरत को नकारते हुए हजारों हिंदू श्रद्धालुओं की सहायता की, वह देश में आपसी भाईचारे की एक शानदार मिसाल बन गया है।

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