दरगाह हज़रत सैयदना शेख़ बदरुद्दीन शाह आरिफ चिश्ती के कई आर्काइव रिकॉर्ड मौजूद हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा शौहरत मुगल बादशाह औरंगजे़ब आलमगीर द्वारा उपहार में दी गई सुलेखित पवित्र कु़रान की एक कॅापी है।
बेलगाम, कर्नाटक : तारीख़ी शहर बेलगाम कर्नाटक की सबसे पुरानी दरगाहों में से एक है। बेलगाम के प्राचीन किले के भीतर स्थित यह दरगाह हज़रत सैयदना शेख़ बदरुद्दीन शाह आरिफ चिश्ती को आठ शताब्दी से अधिक पुराना माना जाता है।
इस क्षेत्र में बसने वाले सूफी संतों में सबसे पहले शेख बदरुद्दीन ने शांति और सद्भाव का संदेश फैलाने के लिए दक्षिण भारत की यात्रा की। बेलगाम में ऐतिहासिक मकबरा अभी भी शहर में सद्भाव का एक महान प्रतीक है।
बेलगाम में दरगाह की देखभाल करने वाले रफीक़ अहमद गव्वास ने कहा, ” हज़रत सैयदना शेख़ बदरुद्दीन शाह आरिफ चिश्ती 800 साल पहले दक्कन में आए थे। उन्होंने शांति और मोहब्बत का संदेश फैलाने के लिए पूरे दक्षिण भारत की यात्रा की और वह इस क्षेत्र में बसने वाले पहले सूफी संतों में से एक थे।
शेख़ बदरुद्दीन मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले थे, वह हजरत शेख़ कु़तुबुद्दीन बख्तियार काकी के शागिर्द थे, जो दिल्ली में स्थित 12 वीं शताब्दी के संत और विद्वान थे। गव्वास के अनुसार, शेख बदरुद्दीन अपने रुहानी उस्ताद की सलाह पर बेलगाम के दक्कन में हिजरत किए । उन्होंने ही दक्षिण में संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के पैगाम और उनका त’आरुफ़ कराया था।
30 साल से अधिक समय से दरगाह की देखभाल करने वाले गव्वास ने कहा कि- ‘हमारे पूर्वज शेख बदरुद्दीन के शागिर्द थे और हम शुरुआती समय से ही इस जगह की ख़िदमत करते आ रहे हैं। मैंने अपने चाचा खत्ताल अहमद से इस दरगाह की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी संभाली, जिन्होंने मेरे पिता अब्दुर रहीम मुजावर से ज़िम्मेदारी संभाली था। और उनसे पहले हमारे दादा इब्राहिम अहमद निगरां थे, जिन्होंने अपने पिता शेख जंगू मियां से पदभार संभाला था।
सभी धर्मों के बादशाहों, राजाओं, मंत्रियों और कमांडरों की तरफ से भी हमेशा एहतेराम किया गया, दरगाह और इस के संतों का लगभग 800 वर्षों के अपने इतिहास में कई राजवंशों के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है।
औरंगजेब का सुलेखित कुरान से ताल्लुक़
इससे भी दिलचस्प बात यह है कि दरगाह हज़रत सैयदना शेख़ बदरुद्दीन शाह आरिफ चिश्ती के कई आर्काइव रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो इसके समृद्ध और जीवंत इतिहास को दर्शाते हैं। और इसकी सबसे बड़ी विरासत में पवित्र कुरान की 16 वीं शताब्दी की एक कॅापी है, जिसे छठे मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर द्वारा सुलेखित और उपहार में दिया गया था।
आगे रफीक़ अहमद गव्वास ने कहा कि- “असल में बादशाह ने अजमेर में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को यह कॅापी उपहार में दी थी, लेकिन हमें नहीं पता कि यह कैसे और कब हमारे पूर्वजों के पास पहुंचा। हम खुद को भाग्यशाली महसूस करते हैं कि हमेरा पास यह मुबारक कॅापी है और हम इसे आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
स्थानीय इतिहास के अनुसार शेख बदरुद्दीन दक्षिण भारत में अपनी यात्रा के बाद बेलगाम पहुंचे और नवनिर्मित किले के परिसर में बस गए। किले का निर्माण मूल रूप से 1204 ई. में रत्ता वंश के राजा जया राय ने करवाया था और शेख बदरुद्दीन (1251ई.) अपनी मृत्यु तक यहीं रहे।
इस मकबरे का निर्माण 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में आदिल शाही जनरल और बेलगाम के तत्कालीन गवर्नर असद खान लारी द्वारा किया गया था। हाल ही में दरगाह के अंदरूनी हिस्सों के दीवारों, गुंबद और छत को कुछ नवीकरण और शानदार फारसी शीशे लगवाये गए हैं, जिससे दरगाह की खूबसूरती और बढ़ गई है।
बेलगाम में अपने लंबे इतिहास के दौरान इसे हमेशा शासकों से उनके अलग विश्वास के बावजूद सरपस्सती हासिल रही है। निगरां के पास मराठा शासकों द्वारा जारी किए गए कई फरमान और सनद मौजूद हैं। जिन्होंने शेख बदरुद्दीन की एहतेरम की और उन्हें संरक्षण दिया।
आखिर में गव्वास ने कहा कि- “यह दरगाह हमेशा शांति और सद्भाव का गहवारा रही है और हम सभी के लिए प्यार के अपने सदियों पुराने तौर-तरीक़े को जारी रखे हुए हैं।