MSO द्वारा संचालित मानव अधिकार संस्था International Democratic Rights Foundation (IDRF) असम सरकार द्वारा लगातार जारी बुलडोज़र कार्यवाहियों की कड़ी निंदा करता है। हालिया घटनाएं न सिर्फ मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हैं, बल्कि यह भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की सीधी अवहेलना भी हैं।
बुलडोज़र का इस्तेमाल कानून के शासन के स्थान पर राजनीतिक प्रतिशोध और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के हथियार के रूप में किया जा रहा है। बिना किसी वैध अदालती प्रक्रिया, सुनवाई या उचित नोटिस के नागरिकों के घर और व्यवसाय तोड़े जा रहे हैं यह पूरी तरह असंवैधानिक और बर्बर है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 और 2023 में स्पष्ट रूप से बुलडोज़र न्याय (Bulldozer Justice) पर सवाल उठाते हुए राज्यों को चेतावनी दी थी कि किसी भी तरह की जबरन तोड़फोड़ विधिक प्रक्रिया के बिना नहीं की जा सकती। असम सरकार की कार्यवाही इन निर्देशों की खुली अवहेलना है और न्यायपालिका की गरिमा पर हमला है।
IDRF पूछता है:
क्या असम में क़ानून नाम की कोई चीज़ नहीं बची है?
क्या सरकार अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सिर्फ एक विशेष समुदाय को निशाना बना रही है?
क्या “न्याय” अब सिर्फ बुलडोज़र की नोक पर तय किया जाएगा?
हम यह भी नोट करते हैं कि इस तरह की कार्रवाइयों में गरीब, अल्पसंख्यक और हाशिए पर खड़े समुदायों को disproportionately निशाना बनाया जा रहा है। यह एक सुनियोजित राजनीति का हिस्सा है जो भारत के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए गंभीर खतरा है।
IDRF की मांगें:
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अविलंब कार्रवाई की जाए।
- असम में चल रही बुलडोज़र कार्यवाही पर तत्काल रोक लगाई जाए।
- जिन नागरिकों के घर-प्रतिष्ठान तोड़े गए हैं, उन्हें मुआवज़ा और पुनर्वास प्रदान किया जाए।
- संसद और न्यायपालिका इस मामले में स्वतः संज्ञान लें और केंद्र सरकार इस पर स्थिति स्पष्ट करे।
IDRF देशभर के नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठनों, वकीलों और पत्रकारों से अपील करता है कि वे इस मुद्दे पर एकजुट हों और लोकतंत्र पर हो रहे इस हमले के खिलाफ मुखर हों।
“बुलडोज़र राज नहीं चलेगा, संविधान ही सर्वोच्च है।”