नई दिल्ली, 31 जुलाई 2024: मुरादाबाद मंडल के कुंदरकी निवासी व स्थानीय भाजपा नेता अलिदाद खान (62) का 23 जुलाई को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। मृतक के परिवार ने आरोप लगाया है कि मस्जिद के इमाम मोहम्मद राशिद ने उनके पिता के जनाज़े की नमाज़ पढ़ाने से मना कर दिया, क्योंकि वे भाजपा का समर्थन करते थे। हालांकि, इमाम ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि यह निर्णय मृतक द्वारा पैगंबर मोहम्मद के प्रति “अपमानजनक टिप्पणियों” के कारण लिया गया था।
परिवार का आरोप: राजनीतिक भेदभाव
अलिदाद के बेटे दिलनवाज़ खान ने 31 जुलाई को जिलाधिकारी (DM) को शिकायत दर्ज कराई और इमाम समेत पांच लोगों के खिलाफ FIR करवाई। उन्होंने बताया कि अलिदाद और उनका परिवार लंबे समय से भाजपा से जुड़ा था। 2022 के पंचायत चुनाव में अलिदाद के भतीजे रिजवान ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। दिलनवाज़ ने कहा, “इमाम ने हमें सिर्फ इसलिए नज़रअंदाज़ किया क्योंकि हमने एक हिंदूवादी पार्टी को वोट दिया।” बाद में, परिवार ने दूसरे इमाम से जनाज़े की नमाज़ पढ़वाई।
इमाम का पक्ष: ‘गुस्ताखी’ को लेकर आपत्ति
इमाम मोहम्मद राशिद ने आरोपों को “बेवजह का मुद्दा” बताते हुए कहा कि जनाज़े की नमाज़ मस्जिद में ही अदा की गई और मृतक के घर के एक सदस्य ने इसे पढ़ाया। उन्होंने स्पष्ट किया, “यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है। अलिदाद नबी-ए-करीम की शान में गुस्ताखी करते थे और कहते थे कि वे किसी नबी को नहीं मानते। ऐसे व्यक्ति का जनाज़ा पढ़ाना धार्मिक रूप से वर्जित है।” उन्होंने सीसीटीवी फुटेज को सबूत के तौर पर पेश किया।
इस्लामिक विद्वान की राय: ‘काफिर’ का जनाज़ा नहीं
इस्लामिक स्कॉलर मौलाना हमदान मरकज़ी ने इमाम के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि “गुस्ताखे रसूल (पैगंबर का अपमान करने वाले) की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना इस्लाम में निषिद्ध है।” उन्होंने इमाम अहमद रज़ा खां की किताब ‘हुस्सामुल हरमैन’ का हवाला देते हुए बताया कि “जो लोग धर्म के मूल सिद्धांतों को नकारते हैं, उन्हें काफिर या मुर्तद (धर्मत्यागी) माना जाता है। ऐसे व्यक्ति का जनाज़ा पढ़ाने वाला भी काफिर हो सकता है और उसे अपने धार्मिक कर्मों (जैसे निकाह) को दोबारा कराना पड़ता है।”
पुलिस कार्रवाई और आगे की जांच
परिवार की FIR के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की है। प्रशासन ने दोनों पक्षों के बयान दर्ज किए हैं और मस्जिद के सीसीटीवी फुटेज का विश्लेषण कर रहा है।