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जामिया के शोधकर्ताओं ने विकसित की नॉन-स्मॉल सेल फेफड़े के कैंसर की शुरुआती पहचान के लिए क्रांतिकारी प्रणाली।

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जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) के मल्टीडिसिप्लिनरी सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च एंड स्टडीज (MCARS) के शोधकर्ताओं ने नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (NSCLC) की शुरुआती पहचान के लिए एक नई डायग्नोस्टिक तकनीक विकसित की है। यह तकनीक CRISPR-Cas12a प्रणाली का उपयोग करके कोशिकाओं में मौजूद डीएनए (cfDNA) में EGFR जीन म्यूटेशन का पता लगाती है। इस नई प्रणाली को अत्याधुनिक कहा जा रहा है, जो कैंसर की पहचान को तेज, सुलभ और अत्यंत सटीक बनाने की क्षमता रखती है। इस EGFR डिटेक्शन सिस्टम का पेटेंट भी फाइल किया जा चुका है।

यह प्रणाली इतनी संवेदनशील है कि यह बेहद कम मात्रा में मौजूद cfDNA और लो-अबंडेंस म्यूटेशन का भी पता लगा सकती है। केवल 37°C के हल्के तापमान पर काम करने वाली यह तकनीक एक घंटे से भी कम समय में सटीक नतीजे दे सकती है। इसमें लैटरल फ्लो असे (LFA) को Cas12a तकनीक के साथ जोड़ा गया है, जिससे एकल प्रतियों (सिंगल-कॉपी) का भी पता लगाया जा सकता है। यह इसे पॉइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक्स के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाता है।

57 NSCLC मरीजों के सैंपल पर किए गए क्लीनिकल परीक्षण में यह प्रणाली पारंपरिक PCR विधियों की तरह ही उच्च संवेदनशीलता और सटीकता के साथ EGFR म्यूटेशन की पहचान करने में सफल रही, लेकिन यह प्रक्रिया तेज और सरल साबित हुई।

EGFR म्यूटेशन डिटेक्शन के अलावा, शोधकर्ताओं ने CRISPR-Cas12 और CRISPR-Cas13 तकनीकों का उपयोग करके हेपेटाइटिस बी (HBV) और हेपेटाइटिस सी (HCV) के लिए भी डायग्नोस्टिक टूल विकसित किया है। यह प्रणाली LFA के साथ जुड़कर दोनों वायरस की पहचान एक ही समय में कर सकती है। यह तकनीक ज्यादा सटीकता और संवेदनशीलता के साथ काम करती है और अन्य वायरस के साथ कोई क्रॉस-रिएक्टिविटी नहीं करती। यह HBV और HCV जैसी बीमारियों की जांच के लिए एक कुशल और तेज समाधान प्रदान करती है, जो भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती हैं।

इस शोध का नेतृत्व डॉ. तनवीर अहमद और पीएचडी स्कॉलर सुश्री सैयदा नाजिदा शाहनी ने किया। उन्हें इस प्रोजेक्ट में डॉ. अमित शर्मा, डॉ. जावेद इकबाल, और डॉ. मोहम्मद इकबाल अज़मी का मार्गदर्शन मिला। साथ ही, MCARS, JMI के माननीय निदेशक प्रोफेसर मोहम्मद हुसैन ने भी उत्साहवर्धन किया।

यह शोध हाल ही में Sensing and Bio-Sensing Research नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है और ऑनलाइन उपलब्ध है।

यह नई तकनीक न केवल कैंसर के इलाज को व्यक्तिगत बनाने में मदद करेगी बल्कि हेपेटाइटिस बी और सी जैसी गंभीर बीमारियों की तेज और सटीक जांच के लिए भी क्रांतिकारी साबित होगी।

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