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मानवाधिकार कार्यकर्ता नदीम खान के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई।

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नई दिल्ली: जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और निर्दोष पीड़ितों के लिए न्याय की पैरवी करने वाले नदीम खान (Nadeem Khan APCR) को अब उनकी निष्पक्षता और मज़लूमों की आवाज बनने की कीमत चुकानी पड़ रही है। उनके खिलाफ दुर्भावनापूर्ण तरीके से एफआईआर दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।

मामले की शुरुआत

दो दिन पहले, दक्षिणपंथी समूहों ने जानबूझकर नदीम खान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया। यह वीडियो एक प्रदर्शनी से संबंधित था, जिसमें हेट क्राइम और नफरत भरे भाषणों की वजह से पीड़ित लोगों की घटनाओं को दिखाया गया था।

हालांकि, इस वीडियो को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया और द्वेष फैलाने वाला बताकर सोशल मीडिया पर दिल्ली पुलिस और प्रशासन को टैग कर कार्रवाई की मांग की गई। सोशल मीडिया के इस दबाव के बाद तेजी से कार्रवाई हुई।

दिल्ली से बेंगलुरु तक पहुंची पुलिस

30 नवंबर 2024 की शाम, शाहीन बाग पुलिस स्टेशन के एसएचओ सहित चार पुलिसकर्मी बेंगलुरु में नदीम खान के भाई के घर पहुंचे, जहां वे अपने परिवार के साथ ठहरे हुए थे।

पुलिस ने बिना किसी गिरफ्तारी वारंट या नोटिस के उन्हें हिरासत में लेने का प्रयास किया। शाम 5 बजे से रात 9 बजे तक पुलिसकर्मी घर में मौजूद रहे और नदीम खान को दिल्ली लौटने के लिए “स्वेच्छा से” राजी करने की कोशिश करते रहे।

गिरफ्तारी की कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी

दिल्ली के शाहीन बाग पुलिस स्टेशन में उसी दिन दोपहर 12:48 बजे एफआईआर (0280/2024) दर्ज की गई थी। कुछ ही घंटों में, शाम 5 बजे पुलिसकर्मी बेंगलुरु में नदीम के भाई के घर पहुंच गए।
लेकिन बीएनएसएस की धारा 35(3) के तहत नोटिस जारी करने या किसी अन्य वैध कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना यह कार्रवाई की गई।

रात 10:45 बजे, 5.45 घंटे की असंवैधानिक पूछताछ के बाद, पुलिस ने बीएनएसएस धारा 35(3) के तहत नोटिस चिपकाया, जिसमें नदीम खान को छह घंटे के भीतर शाहीन बाग पुलिस स्टेशन में पेश होने का आदेश दिया गया।

अवैध दबाव और धमकी

नदीम खान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 196, 353(2), और 61 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
हालांकि, इन धाराओं के तहत अधिकतम सजा तीन साल तक की है। सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के ऐतिहासिक फैसले और बीएनएसएस की धारा 35 के अनुसार, ऐसे मामलों में गिरफ्तारी का प्रावधान नहीं है। बावजूद इसके, पुलिस ने अनुचित दबाव बनाकर और धमकी देकर नियमों का उल्लंघन किया।

एपीसीआर कार्यालय पर भी कार्रवाई

इससे पहले, 29 नवंबर 2024 की रात लगभग 9 बजे, 20-25 पुलिसकर्मी बिना किसी नोटिस और एफआईआर की जानकारी के दिल्ली में एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के कार्यालय पहुंचे। चूंकि कार्यालय बंद था, उन्होंने सुरक्षा गार्ड से नदीम खान और अन्य सदस्यों के बारे में पूछताछ की।

अगली सुबह, पुलिस ने फिर से एपीसीआर कार्यालय में पूछताछ की। जब कार्यालय में मौजूद वकीलों ने पूछताछ का आधार जानना चाहा, तो उन्हें जवाब देने से इनकार कर दिया गया।

मानवाधिकार संगठनों का विरोध

इस घटना के बाद पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इस कार्रवाई की निंदा की है। PUCL ने इसे कानून की उचित प्रक्रिया और नागरिक स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन बताया।

PUCL ने कहा कि यह घटना यह दिखाती है कि सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचनाओं और प्रचार के जरिए प्रशासन और पुलिस पर दबाव बनाकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है।

क्या कहता है कानून?

नदीम खान के खिलाफ दर्ज एफआईआर और पुलिस की कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट और भारतीय कानून की प्रक्रिया का उल्लंघन है। यह घटना न केवल मानवाधिकारों के हनन को उजागर करती है, बल्कि इस बात पर भी सवाल उठाती है कि क्या लोकतांत्रिक समाज में अब भी आवाज उठाने की आजादी सुरक्षित है।

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