हरियाणा: यमुना नदी की सफाई को लेकर चल रहे राजनीतिक विवादों और सरकारी योजनाओं के बीच एक मुस्लिम युवक का निस्वार्थ समर्पण सामाजिक सद्भाव और पर्यावरण प्रेम की मिसाल पेश कर रहा है। मोहम्मद नसीम खान नामक यह शख्स, जिसके पास अपने घर चलाने के लिए भी पर्याप्त साधन नहीं हैं, पिछले कई महीनों से यमुना के किनारे रोज़ाना सफाई अभियान चला रहा है। उनका कहना है – “यमुना माता हैं, इनकी पवित्रता बनाए रखना हम सबका फर्ज़ है।”
क्या है पूरा मामला?
नसीम यमुनानगर के आजाद नगर और चिट्ठा मंदिर जैसे इलाकों में यमुना तट पर जमा होने वाली गंदगी, खंडित मूर्तियों, पूजा सामग्री और कचरे को साफ करते हैं। वह नदी के घाटों की झाड़ू-बुहारी कर उन्हें स्नान योग्य बनाने की कोशिश करते हैं। उनका कार्यक्षेत्र वे इलाके हैं, जहां धार्मिक अनुष्ठानों के बाद लोग प्लास्टिक, फूल-मालाएं और धार्मिक सामग्री बेतरतीब फेंक जाते हैं। नसीम बताते हैं – “लोगों में जागरूकता की कमी है। सरकारी अभियानों में करोड़ों खर्च हुए, पर जनसहयोग न मिलने से नतीजे शून्य रहे।”
समाजसेवी ने की तारीफ, जनता से अपील
समाचार अखबार दैनिक ट्रिब्यून के अनुसार, चैलेंज यूथ क्लब ट्रस्ट के संस्थापक सुधीर पांडे ने नसीम के काम को “प्रेरणादायक” बताया। उन्होंने कहा – “एक मुस्लिम युवक का यमुना के प्रति इतना श्रद्धाभाव देखकर हैरानी हुई। यह समाज के लिए सबक है।” पांडे ने आम जनता और संगठनों से गंदगी न फैलाने और स्वच्छता में योगदान देने की अपील की।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि दिल्ली और हरियाणा में यमुना सफाई को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) और भाजपा के बीच तीखे तकरार हो चुके हैं। विधानसभा चुनावों से पहले दोनों दलों ने एक-दूसरे पर अरबों रुपए के फंड के दुरुपयोग के आरोप लगाए थे। ऐसे में नसीम जैसे व्यक्ति का निजी प्रयास सरकारी दावों की पोल खोलता नज़र आता है।
क्यों है यह महत्वपूर्ण?
- धार्मिक एकता का संदेश: एक मुस्लिम द्वारा हिंदुओं की पवित्र नदी की सेवा सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है।
- जनभागीदारी की कमी: सरकारी योजनाओं की विफलता में आम लोगों की उदासीनता प्रमुख कारण।
- पर्यावरण संकट: यमुना में गिराए जाने वाले प्लास्टिक और नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे से जलजीवन खतरे में।
नसीम का आग्रह: “लोग घरों से कचरा यमुना में न फेंकें। अगर सभी थोड़ा भी योगदान दें, तो नदी पुनर्जीवित हो सकती है।”