मुंबई में हुए 2011 के ब्लास्ट मामले में 14 साल से जेल में बंद मुस्लिम युवक कफील अहमद अय्यूब को आखिरकार बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है।
13 जुलाई 2011 को मुंबई के झावेरी बाजार, ओपेरा हाउस और दादर कबूतरखाना में सिलसिलेवार धमाकों में 21 लोगों की मौत हो गई थी और 113 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। इन धमाकों की जांच मुंबई एटीएस को सौंपी गई थी, जिसने कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें कफील अहमद भी शामिल थे।
जस्टिस ए.एस. गडकरी और आर.आर. भोंसले की बेंच ने कहा कि किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के इतने लंबे समय तक जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
बिहार के रहने वाले कफील अहमद को फरवरी 2012 में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने मुख्य आरोपी यासीन की मदद की और युवाओं को भड़काया। बाद में उन्हें मुंबई एटीएस को सौंप दिया गया।
कफील के वकील मुबीन सोलकर ने अदालत में कहा कि उनके मुवक्किल पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने दलील दी, “कफील पिछले 14 सालों से बिना ट्रायल के जेल में हैं। यह पूरी तरह से संविधान में दिए गए अधिकारों का हनन है।”
अदालत ने 2021 के के.ए. नजीब केस का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई आरोपी लंबे समय से बिना ट्रायल के जेल में है, तो उसे जमानत दी जानी चाहिए।
बेंच ने अपने आदेश में कहा, “किसी भी आरोपी को बिना मुकदमे के अनिश्चित काल तक जेल में रखना न्याय और मानवाधिकारों के खिलाफ है।”
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह मामला न्याय प्रणाली की उन खामियों को उजागर करता है, जिनके कारण हाशिए पर मौजूद समुदायों के लोग वर्षों तक बिना ट्रायल के जेलों में सड़ते रहते हैं।
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों और आलोचकों ने यूएपीए (UAPA) जैसे कड़े कानूनों के दुरुपयोग पर सवाल उठाए हैं, जो सरकार को बिना मुकदमे के लम्बे समय तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है।
कई मुस्लिम संगठनों ने भी इस घटना की निंदा की है और सरकार पर आरोप लगाया है कि वह निर्दोष मुस्लिमों को झूठे मामलों में फंसाकर सालों तक जेल में रखती है।
(यह ख़बर मूल रूप से मुस्लिम मिरर डॉट कॉम पर छापी गई है, जिसे आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं.)















