“अगर हम संतों के पास नहीं बैठेंगे, तो अपने धर्म से भी दूर होंगे और समाज से भी दूर होते चले जाएंगे, और जब समाज से दूरी बढ़ेगी, तो हमारे भीतर दूसरों के लिए घृणा और नफ़रत जन्म लेगी।” यह गहरी बात कही युवा लेखक, शोधकर्ता और सामाजिक चिंतक सय्यद अमजद हुसैन ने, जो हाल ही में यूट्यूब पर जारी होने वाले लोकप्रिय अरुण साथी पॉडकास्ट में विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए।
कार्यक्रम के दौरान जब उनसे होस्ट ने आज के समाज में बढ़ रही वैचारिक दूरी और धार्मिक भ्रम की स्थिति पर सवाल किया, तो सय्यद अमजद ने सूफियाना अंदाज़ में स्पष्ट कहा कि “संतों की संगत केवल धर्म की बात नहीं करती, वह इंसानियत, अपनापन और आपसी मोहब्बत सिखाती है। जब इंसान संतों से कटता है, तो समाज से भी कटने लगता है, और यही दूरी नफ़रत को जन्म देती है।”
बिहार के शेखपुरा ज़िले के सदर नगर परिषद क्षेत्र अंतर्गत जमुआरा गांव के मूल निवासी सय्यद अमजद हुसैन ने बेहद कम उम्र में लेखन और शोध के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उनका चिंतन समाज, संस्कृति, अध्यात्म और इतिहास की गहराइयों से उपजा हुआ है, जो नई पीढ़ी को सोचने और अपने मूल से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है।
पॉडकास्ट में बातचीत के दौरान अमजद हुसैन ने यह भी साझा किया कि ‘बिहार और सूफ़ीवाद’ उनकी तीसरी किताब है, लेकिन यह उनकी पहली ऐसी किताब है जिसने बेस्टसेलर की सूची में जगह बनाई। उन्होंने बताया कि इस किताब ने अपनी रिलीज़ के पहले ही दिन भारतीय लेखकों की श्रेणी में चौथा स्थान हासिल कर लिया था — जो बिहार जैसे राज्य के एक कस्बाई क्षेत्र से आने वाले लेखक के लिए एक बड़ी और प्रेरक उपलब्धि है।
अमजद की यह पुस्तक सूफी परंपरा, बिहार की धार्मिक विविधता और आध्यात्मिक समरसता पर आधारित है, जो आज के समय में सामाजिक सौहार्द और मानसिक शांति की तलाश कर रहे लोगों के लिए एक जरूरी दस्तावेज़ बनती जा रही है।
पॉडकास्ट के प्रसारण के बाद युवाओं, साहित्यप्रेमियों और समाजसेवियों में खासा उत्साह देखा गया। कई लोगों ने सोशल मीडिया के ज़रिए उनकी सोच और भाषा की सादगी की सराहना की।
सय्यद अमजद हुसैन की बातों से साफ़ झलकता है कि अगर युवा पीढ़ी आध्यात्मिक मूल्यों और संतों की शिक्षाओं से जुड़ती है, तो नफ़रत की जगह मोहब्बत और वैमनस्य की जगह समरसता का माहौल बन सकता है। उनकी सोच न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में सामाजिक और वैचारिक सुधार की एक नई लहर पैदा कर रही है।