विद्वानों का कहना है: “डिप्लोमैसी नए रास्ते खोलने का नाम है।” अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी का हालिया भारत दौरा निस्संदेह कूटनीतिक दुनिया में एक नया अध्याय साबित हुआ है। तालिबान सरकार के गठन के बाद यह पहला अवसर है जब किसी उच्चस्तरीय अफगान प्रतिनिधि ने भारत का औपचारिक दौरा किया। इस यात्रा ने न सिर्फ दोनों देशों के रिश्तों में नई जान फूंकी है, बल्कि पूरे क्षेत्र में सहयोग, शांति और विकास की संभावनाएं भी उजागर की हैं।
दौरे के दौरान अमीर खान मुत्तकी ने भारतीय अधिकारियों से मुलाकात की और विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने विशेष रूप से खनिज संसाधनों, कृषि और खेल के क्षेत्र में निवेश के लिए आमंत्रित किया। उनका कहना था — “अफगानिस्तान क्षेत्र के लिए आर्थिक केंद्र बनने की क्षमता रखता है, और भारत जैसे अनुभवी देश की भागीदारी इस क्षमता को वास्तविकता में बदल सकती है।”
उन्होंने व्यापारिक आवागमन को आसान बनाने की भी बात की ताकि दोनों देशों की जनता को प्रत्यक्ष लाभ मिल सके।
भारत ने इस अवसर पर घोषणा की कि वह काबुल में अपने मौजूदा राजनयिक मिशन को पूर्ण दूतावास का दर्जा देने की योजना बना रहा है। यह निर्णय दरअसल विश्वास बहाली और भविष्य के मजबूत संबंधों की नींव है। अतीत में भारत ने अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाएं पूरी की थीं — सड़कें, अस्पताल, स्कूल और बाँध — जो आज भी अफगान जनता की यादों में ज़िंदा हैं। अगर यह सहयोग दोबारा शुरू होता है, तो अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिरता और भारत को व्यापारिक विस्तार प्राप्त होगा।
हालाँकि इस नए अध्याय के साथ कुछ सवाल और आशंकाएँ भी जुड़ी हैं। दुनिया के अधिकांश देशों ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, और मानवाधिकार, विशेषकर महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार के मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताएँ बनी हुई हैं। भारत की नीति अब तक संतुलन और सावधानी पर आधारित रही है — वह रिश्ते भी कायम रखना चाहता है और वैश्विक सिद्धांतों की मर्यादा भी नहीं तोड़ना चाहता।
दौरे के दौरान एक अवसर पर महिला पत्रकारों की भागीदारी को लेकर विवाद भी सामने आया, जिस पर अफगान विदेश मंत्री ने यह स्पष्टीकरण दिया कि यह किसी नीति का हिस्सा नहीं बल्कि एक प्रशासनिक चूक थी। यह सफाई भले ही तत्कालिक तनाव कम करने में सहायक रही, लेकिन इसने यह स्पष्ट कर दिया कि संबंधों के इस नए दौर में कूटनीतिक संवेदनशीलता को बेहद नर्मी और विवेक के साथ संभालना होगा।
कुछ राजनीतिक और सामाजिक वर्गों ने इस दौरे की आलोचना भी की है। उनका कहना है कि भारत को तालिबान सरकार के साथ औपचारिक संबंधों से बचना चाहिए। लेकिन सरकार का रुख स्पष्ट है कि यह यात्रा किसी राजनीतिक समर्थन के लिए नहीं, बल्कि मानवीय, आर्थिक और क्षेत्रीय स्थिरता के उद्देश्य से की गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की आलोचना अस्थायी होती है; यदि व्यावहारिक स्तर पर सकारात्मक परिणाम सामने आएँ तो विरोध अपने आप समाप्त हो जाएगा। वास्तव में भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों की नींव हमेशा भरोसे, सहयोग और जन-संबंधों पर टिकी रही है। आज जब अफगानिस्तान एक नए मोड़ पर खड़ा है, भारत का यह कदम वहाँ के लोगों के लिए सद्भावना और मित्रता का संदेश है। यदि दोनों देश समझदारी, संप्रभुता के सम्मान और पारस्परिक हितों को केंद्र में रखकर आगे बढ़ते हैं, तो आने वाले वर्षों में यह संबंध क्षेत्रीय शांति की राजनीति का नया संदर्भ बन सकते हैं।
समापन टिप्पणी
अमीर खान मुत्तकी का भारत दौरा दरअसल विश्वास बहाली और संवाद के निरंतरता का ऐलान है।
यह कदम छोटा सही, पर कूटनीति के नाज़ुक तराज़ू में इसका महत्व बड़ा है। यह यात्रा इस बात का प्रतीक है कि भारत और अफगानिस्तान अतीत की नींव पर नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाओं पर नज़र रखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। यदि यही दृष्टिकोण कायम रहा तो आने वाले दिनों में दोनों देशों के संबंध न केवल सुदृढ़ होंगे, बल्कि पूरे क्षेत्र में शांति, विकास और सहयोग के नए द्वार खुलेंगे।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)