बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आधार कार्ड पंजीकरण को लेकर जो आंकड़े सामने लाए जा रहे हैं, वे चौंकाने के साथ-साथ गहरी राजनीतिक मंशा की ओर इशारा करते हैं। इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक राइट्स फाउंडेशन (IDRF) को इस बात पर गंभीर चिंता है कि इन आंकड़ों की आड़ में एक विशेष समुदाय मुसलमानों को निशाना बनाकर चुनावी ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है।
यह एक खतरनाक ट्रेंड है, जो लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों समानता, नागरिक अधिकार और निष्पक्षता को गहरे आघात पहुंचाता है। इससे न सिर्फ जनता का ध्यान बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार जैसे असल मुद्दों से भटकाया जा रहा है, बल्कि एक कृत्रिम संकट को जन्म देकर सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
दिल्ली में आधार पंजीकरण के आंकड़े कहीं अधिक विस्फोटक हैं।
यदि आधार पंजीकरण में “गड़बड़ी” या “असामान्यता” कोई वास्तविक मुद्दा है, तो वह सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। दिल्ली जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रशासनिक रूप से सशक्त राज्य में आधार सैचुरेशन के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं:
Central Delhi – 206%
East Delhi – 166%
North-West Delhi – 153%
South Delhi – 150%
North Delhi – 144%
West Delhi – 139%
North-East Delhi – 134%
South-West Delhi – 134%
New Delhi – 44%
जबकि पूरे दिल्ली राज्य की औसत आधार सैचुरेशन दर 133% है यानी यहां की जनसंख्या से 33% अधिक आधार पंजीकरण हो चुका है। Central Delhi का 206% सैचुरेशन दर इस बात का प्रमाण है कि यह मुद्दा केवल “अवैध घुसपैठ” या “बाहरी जनसंख्या” का नहीं है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और डेटा के प्रामाणिक सत्यापन की कमी का संकेत देता है। रेखा गुप्ता की सरकार और केंद्र की एजेंसियों से जवाबदेही तय हो. यदि बिहार में आधार से जुड़े आंकड़ों को लेकर राजनीतिक सवाल उठते हैं, तो फिर दिल्ली सरकार, विशेषकर रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार और केंद्र सरकार के अधीन UIDAI एवं अन्य एजेंसियों को भी उसी कसौटी पर कसा जाना चाहिए।
IDRF मांग करता है कि:
- आधार सैचुरेशन के सभी आंकड़ों की स्वतंत्र व पारदर्शी जांच कराई जाए।
- डेटा सत्यापन की प्रक्रिया को सार्वजनिक किया जाए।
- आधार के नाम पर जनसंख्या नियंत्रण, घुसपैठ या धार्मिक पहचान जैसे संवेदनशील मुद्दों को बिना प्रमाण के उछालने वालों पर कानूनी कार्यवाही की जाए।
- इस पूरे विमर्श को चुनावी राजनीति का औज़ार न बनने दिया जाए।
निष्कर्ष
आधार जैसे संवेदनशील और नागरिक अधिकारों से जुड़े विषयों पर राजनीति करना लोकतंत्र और संविधान दोनों का अपमान है। हमें इसे संवैधानिक दायरे में रहकर, संस्थागत पारदर्शिता और मानवाधिकारों की दृष्टि से देखना चाहिए, न कि धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर नफरत फैलाने का हथियार बनाना चाहिए। IDRF नागरिकों से अपील करता है कि वे ऐसे विमर्शों में सतर्कता से भाग लें और किसी भी डेटा को बिना संदर्भ और प्रामाणिक स्रोतों के राजनीतिक मोहरा बनने से रोकें।