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देश की पहली वन स्टार राइडर है साइमा सैयद, तिरंगा थाम कर गोल्ड मैडल की चाहत

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छोटी सी उम्र में साइमा सैयद ने घुड़सवारी में वन राइडर चैम्पियन बनकर सबको चौंका दिया। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वह लड़की है बल्कि उनके नाम के साथ यह गौरव जुड़ गया कि देश की वह पहली महिला है जिसे वन राइडर बनने का मौक़ा मिला है। बड़ी बात यह भी है कि घुड़सवारी की एंड्यूरेंस चैम्पियनशिप को लिंग के आधार पर नहीं बाँटा जाता। यानी साइमा सैयद लड़की वर्ग ही नहीं सभी वर्गों में चैम्पियन है। जोधपुर, राजस्थान की साइमा ने बचपन से इसी को लगन बना लिया था कि वह एक दिन घुड़सवारी की चैम्पियन बनेगी और अपनी प्रिय घोड़ी अरावली के साथ उसने साल 2021 में यह कर दिखाया। साइमा अब 20 साल की है लेकिन उसके सपने अब भारत को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मैडल दिलाने के हैं। एंड्यूरेंस स्पर्धा को जीतने के साथ ही साइमा अब अन्तरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भी खेल पाएगी।

साइमा सैयद ने 80 किलोमीटर की एंड्यूरेंस रेस में कांस्य पदक के साथ क्वालीफाई कर के ‘वन स्टार राइडर’ होने की उपलब्धि प्राप्त की है। साइमा देश की ऐसी पहली महिला घुड़सवार बन गई है जिसने वन स्टार कैटेगरी प्राप्त की है।

एक्वेस्ट्रीयन फेडरेशन ऑफ इंडिया और आल इंडिया राजस्थानी हॉर्स सोसाइटी के गुजरात चेप्टर के तत्वावधान में

अहमदाबाद में ऑल इंडिया ऑपन एंड्यूरेंस प्रतियोगिता में जब नए ट्रेक पर साइमा उतरी तो उसे अपने रब पर भरोसा था। “मुझे यक़ीन था कि मैं यह कर दिखाऊंगी लेकिन थोड़ा डर भी था क्योंकि 80 किलोमीटर तक अलग अलग तरह के रास्तों से गुज़रते हुए सिर्फ़ अपना हौसला ही नहीं बल्कि अपनी दोस्त अरावली का भी हौसला बनाए रखना होता है। मेरी घोड़ी का नाम अरावली है। यह मूल रुप से मारवाड़ी है व राजस्थान से गुजरात गई हुई है । घबराहट इस बात की थी कि नई जगह, नई ज़मीन पर अरावली कैसा प्रदर्शन करेगी, लेकिन अरावली में तो शायद मुझसे ज़्यादा जोश था।” कहते हुए साइमा चहक उठती हैं।

कुल 80 किलोमीटर की इस स्पर्धा में देश के विख्यात घुड़सवारों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा करते हुए कांस्य पदक के साथ इस रेस में साइमा ने क्वालीफाई किया। सायमा सैयद देश की पहली महिला घुड़सवार बन गई है जिसने ये उपलब्धि प्राप्त की। इससे पूर्व साइमा ने 40 किलोमीटर, 60 किलोमीटर और 80 किलोमीटर की प्रतियोगिताओं में पदक प्राप्त करते हुए क्वालीफाई किया था। वन स्टार राइडर बनने के लिए 40 और 60 किलोमीटर की एक-एक और 80 किलोमीटर की दो प्रतियोगिताओं में क्वालीफाई करना होता है। 60 किलोमीटर गोल्ड मेडल के साथ जीती थी।

एक और उल्लेखनीय बात ये है कि घुड़सवारी की एंड्यूरेंस प्रतियोगिता में पुरुषों और महिलाओं की अलग अलग प्रतियोगिता नहीं होती बल्कि महिलाओं को भी पुरुषों के साथ ही संघर्ष करके जीत हासिल करनी होती है। इससे पूर्व साइमा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए ‘वंडर वूमेन’ का खिताब जीता था। साथ ही वह शो जम्पिंग, हेक्स आदि प्रतियोगिताओं में भी भाग लेकर कई पदक जीत चुकी है। वन स्टार बनने के बाद अब सायमा सैयद ऐंडयूरेन्स की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग ले सकेगी।

अब साइमा सैयद को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए ईएफआई (E.F.I.) में अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अब साइमा का 100 किलोमीटर व उस से अधिक की एंड्यूरेन्स रेस में देश की ओर से खेलने की राह खुल गई है।

इक्वेस्ट्रियन फेडरेशन ऑफ इंडिया ने साइमा को एशियाई और यूरोपीय देशों में भाग लेने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करते हुए उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दी हैं। ईएफआई के महासचिव कर्नल जयवीर सिंह ने यह प्रमाण पत्र जारी किया। इसके साथ ही घुड्सवारी की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आयोजक एक्वेस्ट्रीयन फेडरेशन इंटरनेशनल (E.F.I.) ने भारत की संस्था एफईआई (FEI) की सिफारिश पर साइमा को अपने फेडरेशन में शामिल किया है। ईएफआई की सिफारिश पर एफईआई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए साइमा को पंजीकृत किया है। साथ ही भविष्य में होने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइमा 100 किलोमीटर या उससे अधिक दूरी की प्रतियोगिताओं में भाग ले सकेगी।

साइमा की सबसे अच्छी दोस्त है अरावली

एंड्यूरेन्स प्रतियोगिता में घुड़सवार के साथ घोड़े की भी अहम भूमिका रहती है। घोड़े और घुड़सवार को एक ही इकाई के रूप में देखा जाता है। साइमा सैयद अपनी अधिकांश प्रतियोगिताओं में प्रिय मारवाड़ी घोड़ी अरावली के साथ भाग लेती है। अधिकांश प्रतियोगिताओं में साइमा ने अरावली पर सवार हो कर ही भाग लिया। इस तरह साइमा की इस कामयाबी में अरावली का भी बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा।

साइमा सैयद अपने हिस्से का क्रेडिट अपनी घोड़ी अरावली को देते हुए बोली “असली हक़दार तो अरावली है, उसे मुबारकबाद दीजिए”। जब साइमा यह कहती है तो उनकी आँखों में अपनी दोस्त घोड़ी अरावली के लिए प्यार और श्रद्धा को आप महसूस कर पाएंगे। साइमा कहती है “जानते हैं इस खेल में ख़ास क्या है? एक घोड़े के साथ जितना वक़्त आप बिताते जाते हैं, उतने संवेदनशील होते जाते हैं। यह खेल एक दोस्त भी देता है। हमें क़ुदरत के क़रीब जाने का मौक़ा मिलता है। यह दुनिया का अकेला नायाब खेल है, जिसमें इंसान के साथ उसका हमसफ़र बेशक एक जानवर होता है लेकिन वह आपके लिए मैडल जीतता है। यह हमें प्रकृति के लिए शुक्रिया कहने का मौक़ा देता है। यह संवेदनशीलता आपके मन को भिगो देती है।”

पूरा परिवार है खिलाड़ी

साइमा सैयद के पिता डॉ. सैयद मोईनुल हक़ कयाकिंग (नौकायान) के एशियाई क्वालिफ़ायर हैं। उनके एक भाई फ़ैसल सैयद राजस्थान और राजस्थान पुलिस के लिए शूटिंग टीम में हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं। उसके मैनेजर थे। वह कई पदक जीत चुके हैं। इसके अलावा दूसरे भाई जुनैद सैयद भी राष्ट्रीय स्तर के शूटर हैं और दोनों भाइयों ने कई पदक अपने नाम किए हैं। उनकी बड़ी बहन मसीरा सैयद सॉफ्ट बॉल की राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं, दूसरी बड़ी बहन सारा सैयद तिरंदाज़ी की राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। “मेरी तमन्ना है कि देश की हर बेटी को मेरे पापा जैसे पिता मिलें। वह हमेशा हमारा हौसला बढ़ाते रहे। मेरी मेहनत का जज़्बा मुझे अपने पिता और बड़े पिता सैयद अताउल हक़ से मिला।” साइमा सैयद के दिवंगत दादाजी सैयद इमानुल हक़ स्वतंत्रता सेनानी, इस्लामी स्कॉलर और भारत संचार निगम लिमिटेड में कर्मचारी थे। वे हॉकी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे। उनके दादा का भी साइमा के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। “दादाजी हमेशा कहते थे कि बेटी को आगे बढ़ने का उतना ही हक़ है जितना एक बेटे को। वह मुझे चैम्पियन देखना चाहते थे। आज वह होते तो बहुत ख़ुश होते” कहते हुए साइमा की आँखों में पानी तैर जाता है।

मुस्लिम लड़की होने के नाते क्या परिवार से कभी आपको प्रतिरोध का सामना करना पड़ा? इस सवाल के जवाब में साइमा ठहाका लगाते हुए अपना हिजाब दिखाती है। “इस्लाम और खेल एक दूसरे के पूरक हैं। इस्लाम में घुड़सवारी को पंसदीदा खेल बताया गया है। मुझे भी यह खेल बचपन से पसंद था। बन गया डैडली कॉम्बिनेशन। मैं भी ख़ुश, अब्बू-दादा भी ख़ुश। अम्मी भी ख़ुश और मेरा देश भी ख़ुश। बताइए सफ़र है ना बहुत सुहाना।”वह इस सवाल को रद्द कर देती हैं कि उन्होंने कभी एक लड़की या मुस्लिम होने के नाते कोई भेदभाव झेला हो। “जिस दिन अपने दोनों हाथों में तिरंगा पकड़ कर अन्तरराष्ट्रीय पदक पहनूँगी, उस दिन साबित कर दूँगी कि इस देश ने मुझे क्या दिया और मैंने अपनी धरती माँ के लिए क्या किया। आप मेरे लिए दुआ करेंगे ना?”

“क्यों नहीं करेंगे ऐसी दुआ?” यह जवाब देते हुए हम साइमा को इस नज़ारे के साथ छोड़ आए कि वह मुस्कुराते हुए अपनी घोड़ी अरावली को दुलार रही थी। काश भारत की इस बेटी का हर सपना पूरा हो।

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