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वक्त के साथ-साथ कितना कुछ बदल गया सही मायने में अब बचपन की पूरी तस्वीर ही बदल गई है।

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ऑनलाइन गेमिंग के इस दौर में आज की नई पीढ़ी कितने ऐसे खेल जिनके बारे में शायद जानते भी नहीं हैं जो कभी गली-मोहल्ले में खेले जाते थे। और अब कहीं छूट से गए हैं। बचपन में जिन बच्चों के पास साईकिल नहीं हुआ करती थी तो वे नराज नहीं होते थे नहीं वे साईकिल की जिद्द करते थे जो गाडियों के बेकार पहिये हुआ करते थे। उन्हीं को अपनी साईकिल बनाकर मजे से चलाते थे जो एक दूसरे से आगे निकले की होड़ करते थे।

बचपन के उन खूबसूरत खेलों को खेलते हुए दिन कब बीत जाए ये खेलते हुए पता ही नहीं चलता था स्कूल गए स्कूल से घर आकर जल्दी -जल्दी होमवर्क किया और मोहल्ले की जो दोस्तों की टोली हुआ करती थी उनके साथ खेलने निकल गए लेकिन अब आज के इस दौर में बहुत सारे खेल कहीं गुम हो गए हैं।

एक जमाना हुआ करता था जब बचपन में दोपहर के खेल अलग हुआ करते थे और शाम के खेल अलग और जब रात आती थी तो रात के खूबसूरत खेल अलग हुआ करते थे जिन खेलों को आज की पीढी जानती तक नहीं है। याद कीजिए, कभी गली में दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना, कभी कैरम खेलते हुए खाने-पीने का मजा लेना, तो कभी लूडो में एक-दूसरे की गोटी काटने पर ऐसी खुशी जैसे जग जीत लिया हो।

बिजनेस में ढेर सारे शहर खरीद कर करोड़पति बन जाना, तो कभी पकड़म पकड़ाई खेलते हुए ऊधम मचाना, कभी अन्त्याक्षरी खेलते हुए वक्त बिताना, एक टांग पर चलते हुए एक-दूसरे को पकडऩे की कोशिश करना ये कुछ ऐसी बातें थी जिनके बिना बचपन पूरा ही नहीं हुआ था लेकिन अब ये सब बातें कहीं सिमट सी गईं हैं। डिब्बा, आइस-पाइस, याद कीजिए कभी सुनी है ये आवाज, जो अभी के दौर के बच्चे हैं उन्होनें तो ये शब्द शायद ही सुना हो लेकिन हम जब बच्चे रहे थे तब ये शब्द हमारे बहुत करीब था और हमसे अच्छी दोस्ती भी रखा करता था।

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