शुक्रवार को ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 2008 के विवादित बटला हाउस एन्काउंटर की 17वीं बरसी पर एक मार्च निकाला।
यह शांतिपूर्ण जुलूस, जिसे “इंसाफ मशाल जुलूस” कहा गया, सेंट्रल कैंटीन से गेट नंबर 7 तक निकाला जा रहा था। लेकिन दिल्ली पुलिस और यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसे रोकने के लिए कड़ा रवैया अपनाया। छात्रों को घसीटा गया, मारा-पीटा गया और कई को हिरासत में ले लिया गया। पूरा कैंपस टकराव का मैदान बन गया।
AISA सचिव सौरभ, और छात्र मंतशा व शाजहान उन लोगों में शामिल थे जिन्हें गिरफ्तार किया गया। जामिया AISA अध्यक्ष मिष्कात ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि अधिकारियों ने खुलेआम छात्रों को पुलिस के हवाले किया।
मिष्कात का आरोप है कि पुरुष गार्ड्स ने उनकी ड्रेस फाड़ दी और महिला गार्ड्स ने हिजाब पहनी एक छात्रा को घसीटा। छात्रा उथरा आर. ने कहा – “हम तो सिर्फ शांतिपूर्वक मार्च कर रहे थे। गेट नंबर 7 को जानबूझकर खुला छोड़ा गया ताकि पुलिस आसानी से पकड़ सके। अंदर आने के बाद भी कुछ छात्रों को पकड़ा गया। हमें नहीं पता उन्हें कहाँ ले जाया गया।”
गुस्साए छात्रों ने नारे लगाए – “शर्म करो, दिल्ली पुलिस डाउन डाउन!” और “हम बटला हाउस को याद रखते हैं!”। गार्ड्स से पूछा गया – “आप क्या कर रहे हैं? छात्रों को पीटकर पुलिस को क्यों सौंप रहे हैं?”
AISA ने इस घटना को “अपहरण” जैसा बताया और कहा कि यह छात्रों के प्रदर्शन और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है। संगठन ने तुरंत सभी हिरासत में लिए छात्रों की जानकारी और सुरक्षित रिहाई की मांग की, साथ ही जामिया नगर SHO से जवाबदेही तय करने की अपील की। स्थानीय थानों में फोन करने पर भी कोई जवाब नहीं मिला। AISA ने ऐलान किया कि वे थाने के बाहर प्रदर्शन करेंगे और शनिवार को दोबारा मार्च निकालेंगे।
बटला हाउस घटना की पृष्ठभूमि
यह मुठभेड़ रमज़ान के दौरान हुई थी, जब दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने L-18 फ्लैट पर छापा मारा। इसमें जामिया के छात्र आतिफ अमीन (24) और स्कूल छात्र मोहम्मद साजिद (17) मारे गए, जिन्हें इंडियन मुजाहिदीन का सदस्य बताया गया।
AISA नेता सौरभ ने सवाल उठाया – “आज तक कोई न्यायिक जांच क्यों नहीं हुई? सरकार चाहती है लोग इस घटना को भूल जाएं। मुसलमानों को गेट्टो में धकेल दिया गया और आतंकवादी कहकर बदनाम किया गया।” उन्होंने मुंबई ब्लास्ट केस में 17 साल बाद हुए बरी होने का जिक्र करते हुए कहा कि इंसाफ की लड़ाई जारी रहेगी।
इस एन्काउंटर के बाद जामिया और आसपास के मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तारियों, पूछताछ और मीडिया की नकारात्मक छवि का सामना करना पड़ा। नागरिक अधिकार संगठनों जैसे PUDR और PUCL ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताया। उनका कहना था कि पोस्टमार्टम में blunt trauma (मारपीट), साजिद के शरीर पर नज़दीकी गोली के निशान और आतिफ पर यातना के सबूत मिले। जबकि पुलिस का दावा था कि मुठभेड़ असली थी। साथ ही सवाल उठे कि फ्लैट में एक ही रास्ता था, फिर संदिग्ध कैसे भागे? इंस्पेक्टर शर्मा बिना बुलेटप्रूफ जैकेट के क्यों घुसे?
2009 में NHRC ने पुलिस को उनके बयान के आधार पर क्लीन चिट दी। लेकिन 2010 में RTI से सामने आए पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने दिखाया कि दोनों युवकों को गोली लगने से पहले पीटा गया था और पीछे से गोली मारी गई थी। इसी वजह से सच्चाई की मांग लगातार उठती रही।