नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र लगातार धरने पर बैठे हुये हैं। उनका कहना है कि वो तब तक बैठे रहेंगे जब तक एडमिन उनकी बात नहीं सुनती है। पिछले शाम 5 बजे से ही वो इस धरने पर बैठे हुये हैं। प्रसाशन द्वारा दी गई नोटिस का दहन करके उन्होंने इस प्रदर्शन की शुरुआत की है। इस ठंड की रात में भी वो बैठे रहे। एडमिन को कोई चिंता नहीं अपने छात्रों की। दरअसल यह छात्र अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एडमिन के खिलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं।
जामिया प्रशासन ने उन तमाम बच्चों पर सोकोज् नोटिस निकाली है जिन्होंने कभी कैंपस के मुद्दों पर धरना प्रदर्शन किया है। जिनमें हॉस्टल की सुविधाओं से वंचित रह रहे छात्रों के लिए लड़ी गई लड़ाई शामिल थी। CAA, NRC के दौरान दिल्ली पुलिस की बर्बर हिंसा को याद करना भी था। जिसे अभी हाल ही में 16 दिसंबर को याद किया गया था। क्या शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना देश के नागरिकों का अधिकार नहीं है? क्या ऐसा करने से रोकना संविधान के अधिकारों का हनन नहीं है?
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जामिया के प्रॉक्टर बीते रात प्रदर्शन की जगह पहुंचते हैं और सेंट्रल कैंटीन व उसके आस पास की लाइटों को बंद करवा देते हैं। वॉशरूम में ताला लगवा देते हैं जबकि यहाँ प्रदर्शन में महिलायें भी मौजूद थीं। सिर्फ लाइट बंद नहीं करते हैं बल्कि स्विच को ईंट से तोड़ कर जाते हैं।
प्रदर्शनकारी छात्र जिनमें दो पीएचडी स्कॉलर सौरभ त्रिपाठी व ज्योति कुमारी को रस्टिकेट करने के लिए जामिया एडमिन ने डिसीपिलिनरी कॉमेटी बैठाई जिसके तहत इन्हें बार बार सोकोज के जरिये डराया धमकाया जा रहा है। और भी प्रदर्शनकारी छात्र जिनके खिलाफ़ सोकोज मात्र शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के लिए निकाला गया है।
छात्रों की मांग है उनके खिलाफ़ की गई कार्यवाई को वापस लिया जाये और आगे भी उनके इस अधिकार का जो कि संविधान देती है, का हनन न किया जाये।
एडमिन की तानाशाही यहाँ तक बढ़ी हुई है कि आज प्रदर्शन के दूसरे दिन बिना किसी वजह के पूरे 7 न. गेट की सभी कैंटीन को बंद करके रखा गया है। बच्चे भूखे इधर उधर भटक रहे हैं। यह जामिया एडमिन मज़हर आसिफ की तानाशाही है जो कि संविधान के अधिकारों की हत्या करने तक आ पहुँची है। यह बहुत ही शर्म की बात है। केंद्रीय विश्वविद्यालय में ऐसी घटनाएं देश के लोकतंत्र की हत्या की ओर बढ़े हुये कदम हैं।