सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश प्रशासन को आदेश दिया है कि वे उस व्यक्ति को 25 लाख रुपये का मुआवजा दें जिसका घर बिना उचित नोटिस के गिरा दिया गया था। कोर्ट ने प्रशासन के इस कदम को “अत्यधिक मनमानी” करार दिया और कानून का पालन न करने पर कड़ी आलोचना की।
यह मामला तब शुरू हुआ जब महाराजगंज के निवासी मनोज तिबरेवाल आकाश ने शिकायत की कि 2019 में उनके घर को सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए बिना किसी नोटिस के तोड़ दिया गया था। बुधवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने सुनवाई करते हुए प्रशासन की कार्यवाही की निंदा की। CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “यह पूरी तरह से मनमाना है। यहां कौन-सा कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है? हमारे पास एक हलफनामा है जिसमें बताया गया है कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था। आप केवल साइट पर गए और लोगों को लाउडस्पीकर के जरिए सूचित किया।”
प्रशासन का तर्क था कि आकाश सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर रहे थे, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि ऐसा है भी, तो भी कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “आप कहते हैं कि वह 3.7 वर्ग मीटर का अतिक्रमण कर रहे थे, लेकिन क्या इस तरह से लोगों के घर तोड़े जा सकते हैं? यह तो कानून की अनदेखी है।”
पीठ के एक अन्य न्यायाधीश, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने भी प्रशासन की अचानक की गई इस कार्रवाई पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “आप रातोंरात बुलडोजर लेकर घरों को नहीं तोड़ सकते। परिवार को घर खाली करने का समय तो दें। घर में रखा सामान क्या होगा? कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।”
जस्टिस पारदीवाला ने उचित नोटिफिकेशन की कमी पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “आप लोगों को केवल ढोल बजाकर घर खाली करने का आदेश नहीं दे सकते। उचित नोटिस होना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा देने के अलावा, यूपी के मुख्य सचिव को इस मामले में शामिल अधिकारियों और ठेकेदारों की जांच करने का निर्देश भी दिया है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर विचार करने को कहा है।