सावन के अंतिम सोमवार से ठीक पहले रविवार शाम समस्तीपुर जंक्शन पर हालात पूरी तरह नियंत्रण से बाहर नजर आए। प्लेटफॉर्म नंबर 5 पर जहां 13021 हावड़ा–रक्सौल एक्सप्रेस में कांवड़ यात्रियों की भारी भीड़ उमड़ी, वहीं ठीक बगल में प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर खड़ी मौर्य एक्सप्रेस (Gorakhpur–Hatia–Sambalpur) भी ठसाठस भर गई।
दोनों ट्रेनों में आरक्षित कोचों से लेकर वॉशरूम तक यात्रियों से पूरी तरह भरे हुए थे। AC कोचों में टिकटधारी यात्री चढ़ तक नहीं सके। जनरल बोगी तो दूर, गार्ड का केबिन तक भीड़ से खाली नहीं बचा। ट्रेन के बाहर गेटों से लटकते यात्री, पर बैठे कांवड़िए और खिड़कियों से चढ़ने की होड़—एक संभावित हादसे की तस्वीर पेश कर रहे थे।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये रही कि इतनी भयानक भीड़ के बावजूद न RPF ने कोई कार्रवाई की, न रेलवे के किसी अधिकारी ने हालात को नियंत्रित करने की कोशिश की। ना कोई दिशा-निर्देश, ना कोई मदद। यात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे छोड़ दी गई।
दोनों प्लेटफॉर्म पर भीड़ इतनी बेकाबू थी कि कई जगह यात्रियों के बीच हाथापाई और धक्का-मुक्की की नौबत आ गई। यात्रियों के मुताबिक, ना ट्रेन स्टाफ उनकी सुन रहा था, ना कोई आरपीएफ कर्मी उन्हें बचाने के लिए आगे आया।
ट्रेनें बन रही हैं चलती हुई दुर्घटनाएं
13021 हावड़ा-रक्सौल और मौर्य एक्सप्रेस—दोनों ट्रेनों के भीतर इतनी भीड़ थी कि न दम लेने की जगह थी, न चलने की। बाहर गेटों से लटकते लोग, ऊपर चढ़े यात्री और डिब्बों में मची अफरा-तफरी किसी बड़े हादसे को बुलावा देती दिख रही थी।
(एम. डी. सबाहुद्दीन एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)