2002 गुजरात दंगों के बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है. गुजरात सरकार ने इसी साल 15 अगस्त को उन्हें रिहा कर दिया गया.
तर्क में कहा गया कि 18 साल तक जेल में बिताने के दौरान उनका आचरण अच्छा रहा जिसके कारण समय से पहले उनको रिहा किया जा रहा है मगर सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने दायर हलफनामे में साफ है कि 11 में 10 दोषियों अपनी सजा के दौरान 1000 दिन तक पैरोल, फरलो और अस्थाई जमामत पर बाहर रहे. जबकि 11वां दोषी 998 दिनों तक बाहर रहा.
कई संगठनों ने रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल फाइल की हुई है. इस मामले में सुनवाई जारी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सर्वोच्च अदालत के सामने गुजरात सरकार ने हलफनामा पेश किया. इसके अनुसार रमेश चंदना (58) 1576 दिनों के लिए जेल से बाहर था, जिसमे पैरोल 1198 दिन और फरलो 378 दिन. 11 दोषियों में सबसे अधिक समय ये ही बाहर रहा. बिलकिस बानो के 2002 गैंगरेप के लिए उम्रकैद की सजा पाने वाले 11 लोगों में से दस, 1000 दिनों से अधिक के लिए जेल से बाहर थे.
पैरोल, फरलो और अस्थाई जमानत
सभी को पैरोल, फरलो (अस्थायी छुट्टी होती है, जोकि हर कैदी का अधिकार होता है), अस्थायी जमानत पर जेल से बाहर रखा गया. 11 वें दोषी को 998 दिन जेल से बाहर रहे. आमतौर पर छोटी सजा में एक महीने के लिए पैराल का प्रावधान है वो भी विशेष कारणों में. जबकि लंबी अवधि की सजा में उस समय का मिनिमम टाइम जेल में काटने के बाद अधिकतम 14 दिनों की अवधि के लिए पैरोल दी जाती है. जबकि फरलो मांगने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं है.
गुजरात सरकार का सुप्रीम कोर्ट में तर्क
सोमवार को गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने 14 साल और उससे अधिक उम्र जेल में काटी. इस दौरान उनका आचरण अच्छा पाया गया और केंद्र ने भी इसको जायज मानते हुए सहमति दी. गुजरात दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में 3 मार्च, 2002 को भीड़ ने बिलकिस बानो का रेप किया था और परिवार के 14 लोगों की हत्या भी की थी. इसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. बानो उस वक्त प्रेग्नेंट भी थीं
बिलकिस बानो के साथ रेप और परिवार की हत्या
गुजरात में 2002 गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में बिलकिस बानो के साथ रेप किया गया और फिर उनके परिवार की हत्या कर दी गई. इस मामले में 11 आरोपियों में से 10 को आजीवान कारावाज की सजा सुनाई गई थी. इसी साल 15 अगस्त को दोषियों को रिहा कर दिया गया. इसके पीछे सरकार ने तर्क दिया कि 18 साल तक सलाखों के पीछे रहने वाले दोषियों को उनके जेल में अच्छे व्यवहार के कारण कानून के तहत छोड़ा गया. अब एक आंकड़ा सामने आया जो चौंकाने वाला है. कहने को तो दोषियों ने 18 साल जेल में बिताए मगर इसमें से बहुत ज्यादा वक्त पैरोल और छुट्टियों के चलते बाहर भी रहे.