सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से वित्त पोषित मदरसों को सामान्य स्कूलों में तब्दील करने के खिलाफ दायर एक याचिका पर असम सरकार को नोटिस जारी किया है। बता दें कि इससे पहले गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था। दरअसल साल 2020 में असम विधानसभा द्वारा एक कानून पारित किया गया था, जिसके अनुसार राज्य सरकार द्वारा संचालित मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदला जाना था। इस कानून को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखने का फैसला सुनाया था।
इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने असम सरकार और अन्य से जावाब तलब किया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से खंडपीठ के समक्ष अधिवक्ता संजय हगड़े ने कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला गलत था, क्योंकि इसमें प्रांतीयकरण की तुलना राष्ट्रीयकरण से किया गया था।
आगे उन्होंने कहा कि यह पूरा मामला अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों से संबंधित है। इसके आलावा इस याचिका में यह भी कहा गया कि साल 1995 का अधिनियम मदरसों में काम करने वाले शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने और परिणामी लाभ देने के लिए राज्य के उपक्रम तक सीमित था। साथ ही इन धार्मिक संस्थानों के प्रशासन, प्रबंधन और नियंत्रण का अधिकार था, लेकिन साल 2020 का कानून अल्पसंख्यकों की संपत्ति छीन रहा है और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के अल्पसंखयक समुदाय के आधार को प्रभावित करता है।
याचिका में आगे कहा गया है कि पर्याप्त मुआवजे के भुगतान के बिना याचिकाकर्ता मदरसों के मालिकाना हक में इस तरह का अतिक्रमण भारत के संविधान के अनुच्छेद 30(1-A) का सीधा उल्लंघन है। इसके बारे में जस्टिस रस्तोगी ने पूछा कि आपके कहने का मतलब यह है कि मदरसों या अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्ति भी सरकार द्वारा ली जा रही है? और नोटिफिकेशन केवल कर्मचारियों या मदरसों में तैनात शिक्षकों की सेवा शर्तों के संदर्भ में हैं?
इस पर याचिकाकर्ता के वकील हेगड़े ने कहा, जी हाँ नोटिफिकेशन तो बस इतना ही था, लेकिन असल में मदरसों की संपत्ति छीन ली गई, उन्होंने ने यह भी तर्क दिया है कि हाईकोर्ट के फैसले के संचालन के मुताबिक़ मदरसों को बंद कर दिया जाएगा। साथ ही इस शैक्षणिक सत्र में पुराने पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया जाएगा, जो कि अल्पसंख्यकों को अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए दी गई संवैधानिक गारंटी के खिलाफ होगी। इसी याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।