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कश्मीरी महिलाएं घाटी में बाधाओं को तोड़ कारोबार में बढ़ रही हैं आगे

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कारोबार हो या कुछ और, कश्मीर की महिलाएं घाटी में मजबूती से खड़ी हैं और अपने हुनर से हर मैदान में आगे बढ़ रही हैं. कश्मीर की ऐसी ही दो बेटियां हैं मंशा पंडित और उज्मा भट्ट, जिन्होंने तमाम मुश्किलों को पार कर कारोबार में अपना नाम बनाया है। और खुद को सशक्त बनाया है।

26 साल की मंशा पंडित श्रीनगर के लाल बाजार इलाके की रहने वाली हैं। जो कश्मीर में अपनी कढ़ाई की हुनर के लिए जानी जाती हैं। जब वह आठवीं कक्षा में थी तो अपनी मां और दादी को कढ़ाई करते देख खुद भी यह काम करने लगी। और 20 साल की उम्र में वो इस हुनर में माहिर हो गईं। उन्होंने इस कला को सीखने के लिए सात साल तक कड़ी मेहनत की और आखिरकार 2020 में उन्होंने पहली बार अपने प्रोडक्ट्स को लोगों के सामने पेश किया।

कश्मीर की यह कारोबारी बेटी कुशन, वॉल हैंगिंग, झुमके और रेशम के धागे के अन्य उत्पाद बनाती हैं और उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन बेचती हैं ।मंशा के लिए यह कारोबार में एक बड़ी सफलता है। आज मंशा कश्मीर में रेशम के धागे की बुनाई के क्षेत्र में एक प्रमुख चेहरा बन गई हैं। और ये इकलौती बेटी है जो ऐसा कर रही है. एक तरफ मंशा कढ़ाई बुनाई के जरिए कश्मीर में फैशनेबल काम कर रही है। वहीं दूसरी तरफ एक कश्मीरी महिला पत्रकार अलग अलग डिज़ाइन के हिजाब तैयार कर कश्मीर की महिलाओं तक पहुंच बना रही है और अब उन्होंने अपने हिजाब को एक ब्रांड बना लिया है।

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श्रीनगर के चन्नपुरा इलाके की 27 वर्षीया उज़्मा भट्ट कश्मीर में हिजाब का एक सफल कारोबार चलाती हैं, जिसे कश्मीर में आवारा कहा जाता है। हिजाब के लिए उज़मा का प्यार और कश्मीर के बाजारों में बेहतरीन किस्म के हिजाब की अनुपलब्धता ने उन्हें इस क्षेत्र में ला दिया और आज वह इस कारोबार को सफलतापूर्वक चला रही हैं।

आज उज़मा का आवारा हिजाब घाटी में कश्मीरी महिलाओं की पहली पसंद बन गया है। उज्मा ने आर्थिक तंगी के बावजूद यह काम शुरू किया है। उज्मा ने जब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की, तभी से वह इस कारोबार में लग गईं। अपने जेब खर्च से रुपये बचाकर उन्होंने यह काम शुरू किया। और आज इसे एक ब्रांड बना लिया है। इन दोनों कश्मीरी बेटियों के काम से यह साबित होता है कि आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और समर्पण किसी को भी सफलता की ओर ले जा सकती है।

कश्मीर में कारोबार के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, जिन्हें तलाशने की जरूरत है। मंशा और उज्मा जैसी युवा कश्मीरी महिलाओं को सलाम, जो घाटी में दूसरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रही हैं। और कारोबार के लिए लगातार ऐसे अवसरों की तलाश में रहती हैं।

(लेखक एमएसओ के अध्यक्ष हैं)

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