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गुजरात में अमित शाह बोले- 2002 में दंगाइयों को सिखाया सबक!

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को झालोद में एक जनसभा को संबोधित किया, जहां उन्होंने 20 साल पुराने 2002 में हुए गुजरात मुस्लिम नरसंहार का मुद्दा उठाते हुए कहा, कि हमने दंगाइयों को ऐसा सबक सिखाया है कि आज तक वह अपना सिर नहीं उठा पाए हैं, और इन दंगाईयों को गुजरात से बाहर जाना पड़ा है, भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में “स्थायी शांति” स्थापित की।

गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में खेड़ा जिले के महुधा कस्बे में एक रैली को संबोधित कर रहे थे। जहां शाह ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक टिप्पणी में दावा किया कि, गुजरात में 2002 के “दंगे” इसलिए हुए थे क्योंकि कांग्रेस ने इन दंगाईयों को लंबे समय तक समर्थन दे रखा था जिसके कारण इन दंगाईयों को हिंसा करने की आदत हो गई थी।

उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी राज्य में अखंड शांति लेकर आया है गुजरात में कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी तो संप्रदायिक दंगे चरम पर थे, मुझे बताइए कि क्या कांग्रेस के दौर में दंगे होते थे या नहीं, नरेंद्र मोदी ने एक बार 2002 में इन दंगाईयों को ऐसा सबक सिखाया कि आज तक वह अपना सिर नहीं उठा पाए हैं, ये दंगाई अब गुजरात से बाहर चले गए हैं।

बता दें कि फरवरी 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन में आग लगने की घटना के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर भड़की हिंसा में 2000 से अधिक मुसलमान मारे गए थे और उस वक्त शाह तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन राज्य के गृह मंत्री थे।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ शाह ने कहा कि बीजेपी ने संप्रदायिक दंगे करवाने वालों को ऐसा सबक सिखाया है कि आज तक दंगाई अपना सिर नहीं उठा पाए हैं ।

उन्होंने आगे कहा कि, “गुजरात में कांग्रेस के शासन के दौरान (1995 से पहले), सांप्रदायिक दंगे बड़े पैमाने पर थे। कांग्रेस विभिन्न समुदायों और जातियों के लोगों को आपस में लड़ने के लिए उकसाती थी। ऐसे दंगों के जरिए कांग्रेस ने अपना वोट बैंक मजबूत किया था और समाज के एक बड़े तबके के साथ अन्याय किया था।
लेकिन 2002 में उन्हें सबक सिखाने के बाद इन तत्वों ने वह रास्ता (हिंसा का) छोड़ दिया। उन्होंने 2002 से 2022 तक हिंसा में शामिल होने से परहेज किया।

आगे अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी धन्यवाद दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस अपने “वोट बैंक” के कारण इसके खिलाफ थी।

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