तेलंगाना: जिले में अपने कार्यकाल के दौरान नारायणपेट के पूर्व डीसी हरि चंदना दसारी द्वारा मोबाइल शौचालय और रिंग शौचालय का निर्माण किया गया था।
उन्होंने रोडवेज बसों को महिलाओं के लिए मोबाइल शौचालय में तब्दील करवाया
पहला मोबाइल SHE शौचालय कोसगी नगर पालिका में आया और फिर मॉडल को राज्य के बाकी हिस्सों में दोहराया गया
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जब कोविड 19 महामारी ने भारत को प्रभावित किया तब तेलंगाना के नारायणपेट जिले में उचित सार्वजनिक स्वच्छता सुविधाएं नहीं थीं। शौचालय निर्माण में जिला पिछड़ रहा है। यह तब है जब नारायणपेट के तत्कालीन जिला कलेक्टर हरि चंदना दसारी ने शौचालयों का एक मॉडल तैयार किया था जिसे अब पूरे राज्य में दोहराया जा रहा है।
उनके द्वारा शुरू किए गए ‘टॉयलेट्स ऑन व्हील’ (Toilets On wheel) अभियान ने जिले को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) का दर्जा दिलाने में मदद की। इसके अलावा उन्होंने देश में ‘सर्वश्रेष्ठ नगर पालिका’ होने का पुरस्कार भी जीता। सुश्री चंदना द इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप द्वारा घोषित एक्सीलेंस इन गवर्नेंस अवार्ड्स 2020- 2021 के 19 विजेताओं में शामिल थीं।
मिशन मोड
इंडियन मास्टरमाइंड्स के मुताबिक़ उन्होंने कहा, “यह जिला घरेलू शौचालयों के निर्माण में पिछड़ रहा था और सीमित सार्वजनिक शौचालय थे। तेलंगाना के अन्य जिलों की तुलना में हम स्वच्छ अभियान में काफी नीचे थे। सरकारी अस्पतालों और स्कूलों में शौचालयों की भी कमी थी। जैसा कि तेलंगाना सरकार जिले के लिए 100% कवरेज का लक्ष्य बना रही थी, हमने शौचालय निर्माण को एक मिशन मोड पर लेने का फैसला किया।
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महामारी के दौरान शौचालय निर्माण के लिए जनशक्ति और सामग्री की उपलब्धता बहुत मुश्किल थी। इसलिए जिले ने सभी के लिए सुरक्षित स्वच्छता तक पहुंच के एजेंडे को पूरा करने के लिए विभिन्न प्री-फैब या आसान निर्माण विधियों को अपनाया।
मोबाइल शौचालय
सुश्री दसारी ने कोसगी नगर पालिका से शुरुआत की जहां उन्होंने एक पुरानी आरटीसी बस को परिवर्तित कर मोबाइल शौचालय बनवाया। नारायणपेट जिले में बहुत सारे धार्मिक स्थल हैं जिनका उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा सीमित समय के लिए ही किया जाता है। बाकी समय ये बंद रहते हैं। इसके अलावा, क्षेत्र में साप्ताहिक मेले और पशु मेले भी आयोजित किए जाते हैं।
आईएएस अधिकारी हरि चंदना (IAS Officer Hari Chandna) ने कहा, “इन क्षेत्रों में स्थायी शौचालय निर्माण पूरी तरह से व्यवहार्य नहीं होगा क्योंकि उनके उपयोग और रखरखाव के मुद्दे हैं। साथ ही सीमित संसाधन होने के कारण हम केवल कुछ ही मोबाइल शौचालयों में निवेश कर सकते हैं। इसलिए इन पुरानी बसों को महिलाओं के लिए मोबाइल शौचालय में बदल दिया गया। इनमें से कुछ बसों को चाय के स्टालों में भी परिवर्तित किया जाता है जो स्थानीय एसएचजी महिलाओं द्वारा संचालित की जाती हैं।
प्रशासन इस समस्या से निपटने का एकमात्र तरीका मोबाइल शौचालय ही नहीं था, बल्कि उन्होंने अस्पतालों में रिंग शौचालय मॉडल भी शुरू किया। गोलाकार शौचालय बनाने के लिए एक दूसरे के ऊपर सीमेंट के छल्लों को लगाकर निर्माण में लगभग चार दिन का समय लगता है। ऐसे प्रत्येक शौचालय की लागत उस समय 12 हजार से 14 हजार रुपये होती है, जिससे निर्माण की लागत और समय में कमी आती है। यह एक त्वरित मापनीय मॉडल था और जिले में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
ओडीएफ प्लस स्थिति
सुरक्षित स्वच्छता और स्वच्छ परिवेश पर लोगों को लामबंद करने के लिए एक समानांतर अभियान शुरू किया गया था। लोग इन संरचनाओं की निगरानी और रखरखाव में शामिल हो गए। चूंकि स्वास्थ्य एक प्राथमिकता बन गया है और जिला प्रशासन सुरक्षित स्वच्छता को इससे जोड़ सकता है जिससे जनभागीदारी सुनिश्चित हो सके। इन विभिन्न मॉडलों को लागू करने के 3 महीने के भीतर जिले को ओडीएफ+ घोषित कर दिया गया था।
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मोबाइल शी शौचालय मॉडल को पूरे राज्य में दोहराया गया था और शहरी विकास मंत्री और भारत सरकार के अन्य मंत्री द्वारा इसे लागू करने के लिए एक सर्वोत्तम अभ्यास के रूप में सुझाया गया था। अब तेलंगाना में विभिन्न स्थानों पर ऐसे 200 से अधिक बस-शौचालय काम कर रहे हैं।