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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश: बुलडोजर न्याय को अस्वीकार, संपत्ति ध्वस्तीकरण के लिए कानूनी प्रक्रिया अनिवार्य।

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सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर न्याय’ को अस्वीकार करते हुए, संपत्ति ध्वस्तीकरण से पहले छह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन अनिवार्य किया। अदालत ने राज्य सरकार की मनमानी कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए, सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई के निर्देश दिए।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में ‘बुलडोजर न्याय’ की प्रथा को खारिज कर दिया है और इसे अत्याचारी एवं एकतरफा करार दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले उचित सर्वेक्षण, लिखित नोटिस जारी करने और आपत्तियों पर विचार करने की प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा के संदर्भ में लिया गया है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि बुलडोजर न्याय की अनुमति दी गई, तो यह संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता को समाप्त कर सकता है और मनमानी कार्रवाई का रास्ता खोल सकता है।

अदालत की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने कहा कि “किसी भी व्यक्ति के पास जो अंतिम सुरक्षा होती है, वह उसका घर है” और यह कि किसी भी प्रकार की अवैध तोड़फोड़ में राज्य को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा। इस आदेश में विशेष रूप से विकास परियोजनाओं के तहत संपत्तियों के विध्वंस के लिए छह जरूरी प्रक्रियाओं को अनिवार्य किया गया है, जिनमें मौजूदा भूमि अभिलेखों का सत्यापन, अतिक्रमण की पहचान के लिए सर्वेक्षण, लिखित नोटिस जारी करना, आपत्तियों का विचार और उचित समय पर अतिक्रमण हटाने का अवसर देना शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश के घर को गिराने के मामले में यह निर्णय सुनाया। 2019 में, अधिकारियों ने दावा किया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार के लिए यह विध्वंस आवश्यक था, लेकिन जांच में यह पाया गया कि केवल कुछ हिस्सा सरकारी भूमि पर था, और बिना उचित नोटिस के संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया। अदालत ने इस कार्रवाई को राज्य की शक्ति का दुरुपयोग मानते हुए कड़ी आलोचना की।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक अधिकारियों को गैरकानूनी कार्रवाई करने या उसे मंजूरी देने के खिलाफ अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। राज्य सरकारों को इस आदेश के अनुसार सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया गया है और कहा गया है कि इस प्रकार के विध्वंस से पहले सभी निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक होगा।

यह निर्णय एक ऐसे समय में आया है जब हाल ही में भाजपा शासित राज्यों में कथित रूप से बिना कानूनी प्रक्रिया के विरोधियों, अल्पसंख्यकों और सरकार के आलोचकों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने के मामले सामने आए थे। अदालत ने इन घटनाओं की गंभीरता को समझते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

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