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न्याय के दोहरे मापदंड | वसीम अकरम त्यागी

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मालेगांव ब्लास्ट मामले में वारंट मिलने के बाद ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ने ट्विटर पर अपनी एक तस्वीर पोस्ट की। तस्वीर में उनका चेहरा सूजा हुआ है। तस्वीर के साथ प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने लिखा, “”कांग्रेस का टॉर्चर सिर्फ ATS कस्टडी तक ही नहीं मेरे जीवन भर के लिए मृत्यु दाई कष्ट का कारण हो गए। पूरे शरीर में दवाओं से सूजन आ गई है, अस्पताल में इलाज चल रहा है, जिंदा रही तो कोर्ट ज़रूर जाऊंगी।” साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अभी ब्लास्ट के आरोपों से बरी नहीं हैं, लेकिन फिर भी उन्हें भाजपा ने टिकट दिया, सांसद बनीं। वीवीआईपी प्रोटोकाल का लाभ ले रही हैं।

काश! इस देश में ऐसी किस्मत गुलबर्गा के निसार की होती जो बेगुनाह होने के बावजूद आतंकवाद के झूठे आरोप में 25 सालों तक जेल में रहे। काश! गुलज़ार वाणी की भी ऐसी किस्मत होती जो बेगुनाह होने के बावजूद आतंकवाद के झूठे आरोप में 17 सालों तक जेल में रहे। काश! गुजरात के आदम अजमेरी और मुफ्ती कय्यूम के साथ जेल में बंद रहे सभी बेगुनाहों की ऐसी किस्मत होती जो बेगुनाह होने के बावजूद आतंकवाद के झूठे आरोप में 12 सालों तक जेल में रहे। काश बेगुनाह कैदी के लेखक अब्दुल वाहिद की भी ऐसी किस्मत होती जो बेगुनाह होने के बावजूद आतंकवाद के झूठे आरोप में 9 सालों तक जेल में रहे।

बेगुनाह होने के बावजूद पांच, दस पंद्रह, बीस, पच्चीस सालों तक आतंकवाद के झूठे आरोप में जेल में रहने वाले इन बेगुनाहों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। ये कोई एक नाम नहीं हैं। अनगिनत नाम हैं। ये सभी या तो छात्र थे, या फिर इंजीनियर, डाॅक्टर, सोशल एक्टिविस्ट थे। लेकिन इनकी ज़िंदगी जेल की काल कोठरी में बर्बाद कर दी गई। पूर्वाग्रह से ग्रस्त सरकारी मशीनरी उन्हें सिर्फ क़ैद खाने तक पहुंचाने से संतुष्ट नहीं थी, बल्कि जेल में उन “बेगुनाह आतंकियों” के साथ अमानवीय सलूक किया गया। किसी को अंडा सेल में रखा गया, किसी को ‘दूसरे’ क़ैदियों से पिटवाया गया। ये सब अपने उस गुनाह की सज़ा पा रहे थे जो उन्होंने किया ही नहीं था। उनकी किस्मत साध्वी प्रज्ञा की जैसी नहीं है!

साध्वी के लिए तो पूरी भाजपा खड़ी हो गई, लेकिन उन अब्दुल वाहिदों, निसारों, क़य्यूमों आदम अजमेरियों से तो उनके रिश्तेदारों ने ही किनारा कर लिया था। साध्वी ब्लास्ट की आरोपी है इसके बावजूद भाजपा ने उन्हें टिकट दिया, सांसद बनाया, लेकिन अदालत से बाइज्ज़त बरी होने वाले ‘निसारों’ के लिए राजनेता हमदर्दी के दो बोल भी नहीं बोल पाए। इतना भी नहीं कह पाए कि आपके साथ ग़लत हुआ। अदालतों ने ‘न्याय’ तो किया लेकिन न्याय देने में इतना समय लगा दिया कि वह न्याय ही अन्याय जैसा लगने लगा।

अदालत द्वारा देरी से दिए गए न्याय में बस एक ही संतोष था कि वो आतंकवाद के झूठे आरोप से बरी हो गए। लेकिन उनकी ऐसी क़िस्मत कहां कि वो माननीय बन सकें। उनकी किस्मत तो ऐसी है कि उनके वकीलों को भी हिकारत से देखा गया, कोर्ट परिसर में उनके वकीलों पर ‘देशभक्तों’ द्वारा हमले किए गए। आज साध्वी अपने ऊपर लगे आतंकवाद के आरोप के लिए कांग्रेस को दोषी ठहरा रही है। लेकिन वो “बेगुनाह क़ैदी” किसे दोष दें? किसे ज़िम्मेदार ठहराएं? साध्वी अभी बरी नहीं है, फिर भी वो ऐसे बयान दे रही है जैसे बरी हो गई हों। लेकिन जो “बाइज्ज़त बरी” हुए वो तो आज भी उस अपराध की फ़ब्तियों को सुनते हैं जो उन्होंने किया ही नहीं था। बाई दा वे साध्वी दोषी है तो उसे सज़ा मिले और यदि दोषी नहीं है तो फिर उन्हें जेल की काल कोठरी में बंद करने वाले अफ़सरों को सज़ा मिले।

(लेखक मशहूर पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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