दिल्ली के ओखला क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चलाए जा रहे विध्वंस अभियान ने बटला हाउस, मुरादी रोड और खिजराबाद कॉलोनी जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में दहशत और नाराज़गी फैला दी है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग द्वारा क्रमशः 26 मई और 22 मई को लगाए गए नोटिसों ने 80 वर्षों से अधिक समय से यहां रह रहे स्थानीय निवासियों को गहरे संकट में डाल दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और MC मेहता मामला
यह विध्वंस सुप्रीम कोर्ट के 8 मई 2025 के आदेश के तहत किया जा रहा है, जो 2018 के MC मेहता बनाम भारत सरकार मामले से जुड़ा है। इस ऐतिहासिक मामले में कोर्ट ने दिल्ली की सरकारी भूमि और अवैध कॉलोनियों में किए गए अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था और इसके लिए एक टास्क फोर्स गठित की गई थी।

DDA द्वारा 15 मार्च 2025 को प्रस्तुत शपथपत्र में कहा गया कि खसरा नंबर 279 की ज़मीन उन्हें अभी तक सौंपी नहीं गई है, इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकी। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि जिन ज़मीनों पर DDA का अधिकार है, वहां तुरंत कार्रवाई की जाए।
खसरा नंबर 279 का विस्तृत विवरण (जहां विध्वंस आदेश लागू है)
कुल भूमि क्षेत्र: 34 बीघा, 8 बिस्वा
13 बीघा, 14 बिस्वा: खाली ज़मीन (कोई कार्रवाई नहीं)
11 बीघा, 11 बिस्वा: यूपी सिंचाई विभाग के अधीन (कोई कार्रवाई नहीं)
9 बीघा, 3 बिस्वा: अवैध निर्माण:
5 बीघा, 15 बिस्वा: DDA के अधिकार क्षेत्र में (विध्वंस आवश्यक)
3 बीघा, 5 बिस्वा: पीएम-उदय योजना के अंतर्गत (सुरक्षित)
2 बीघा, 10 बिस्वा: योजना से बाहर (विध्वंस आवश्यक)
पूर्व की कार्रवाई: तैमूर नगर ड्रेन पर DDA की पहल
5–6 मई 2025 को DDA ने तैमूर नगर ड्रेन के साथ अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की थी। हालांकि, जहां ड्रेन यमुना से मिलती है, वह इलाका अभी भी जाम है। मॉनसून से पहले यह कार्य अधूरा छोड़ देना विशेषज्ञों के अनुसार समस्या को और गंभीर कर सकता है।
खसरा 277 बनाम खसरा 279: कानूनी भ्रम और ज़मीनी हकीकत
खिजराबाद कॉलोनी के निवासी दावा करते हैं कि उनका घर खसरा नंबर 277 में आता है, जबकि विध्वंस आदेश 279 के लिए था। बावजूद इसके, सिंचाई विभाग ने 15 दिन का नोटिस चिपका दिया। स्थानीय दरगाह से जुड़े एक बुज़ुर्ग ने बताया कि यह इलाका 650 साल पुराना है और इसका नाम खिज्र ख़ान (साय्यद वंश) पर रखा गया है। उन्होंने सरकारी जल स्रोत, बिजली मीटर, और 45 साल पुरानी तस्वीरें दिखाकर दावा किया कि यह बस्ती वैध और पुरानी है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
मुरादी रोड ओखला का एक प्रसिद्ध बाज़ार है, खासतौर से शादी-ब्याह और पुरुषों के वस्त्रों के लिए। एक दुकानदार ने कहा, “हमने करोड़ों का निवेश किया है, दुकानें ही हमारा जीवन हैं। अब सब कुछ बर्बाद होने वाला है।”
किरायेदार महिलाओं ने बताया कि डर के कारण मकान मालिक किराया बढ़ा रहे हैं या लोगों को निकाल रहे हैं। एक युवा निवासी ने बताया कि उसने दो साल पहले लोन लेकर घर खरीदा और शादी की, लेकिन अब उसका घर भी विध्वंस की लिस्ट में है।
कानूनी दृष्टिकोण: क्या यह अधिकार क्षेत्र से बाहर की कार्रवाई है?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि बिना सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के खसरा 277 में कार्रवाई करना अधिकारों का अतिक्रमण है। यह अदालत की अवमानना भी मानी जा सकती है। स्थानीय लोग कोर्ट से स्टे और मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

ज़मीन से आवाज़ें: विरोध और दर्द
सामाजिक कार्यकर्ता तम्मना खान ने कहा, “हमारे घर क्यों तोड़ रहे हैं? हमें भी तोड़ दो। परदादार औरतें कहां जाएंगी? यह मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की साज़िश है।” दरगाह के एक सदस्य ने कहा, “यह हमारी पहचान है। खुरज बाबा शिरीन यहां सदियों से हैं। अब हम अपनी विरासत की लड़ाई लड़ रहे हैं।”
राजनीतिक चुप्पी से जनता नाराज़
स्थानीय विधायक अमानतुल्लाह खान की अनुपस्थिति और चुप्पी पर भी जनता में गुस्सा है। “वो कभी नहीं आए, न कोई बयान दिया,” एक बुज़ुर्ग ने कहा।
ओखला का विध्वंस केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक मानवीय संकट है। यह जीवन, रोज़गार और इतिहास का सवाल है। जैसे-जैसे बुलडोज़र नज़दीक आते हैं, समुदाय की उम्मीद अब केवल न्यायपालिका पर टिकी है।
(हसीब एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो ज़मीनी स्तर की रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं। आप उनसे उनके एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल @haseeb46598 पर जुड़ सकते हैं।)