भोपाल: हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर दो हिंदी अखबारों के संपादकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन अखबारों ने धार्मिक शब्दों का गलत इस्तेमाल कर समाज को बांटने और एक पूरे समुदाय को बदनाम करने वाली खबरें छापी हैं।
याचिकाकर्ता का कहना है कि अखबारों ने बार-बार ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया, जबकि यह न तो इस्लाम में मौजूद है और न ही भारतीय कानून (IPC) में। इस शब्द को एक समुदाय को निशाना बनाने के लिए जानबूझकर इस्तेमाल किया गया।
हाल ही में भोपाल की एक घटना में भी इस शब्द का प्रयोग किया गया, जबकि ‘लव जिहाद’ का कोई धार्मिक या कानूनी आधार नहीं है। याचिका में कहा गया है कि ‘जिहाद’ शब्द को ‘लव’ के साथ जोड़कर धर्म को संदेह के घेरे में लाने की कोशिश की गई। यह शब्द किसी व्यक्ति के कृत्य को बिना कोर्ट के फैसले के ही धर्म से जोड़ देता है।
याचिकाकर्ता मारूफ अहमद खान ने कहा कि अखबारों ने समाज में नफरत फैलाकर देश की एकता और सामाजिक रिश्तों को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने बताया कि ‘लव जिहाद’ शब्द को सुर्खियों में इसलिए दिखाया गया ताकि एक समुदाय को बुरा साबित किया जा सके और धार्मिक समूहों के बीच गलतफहमी पैदा हो।
याचिका के मुताबिक, किसी व्यक्ति का गलत काम उसकी निजी गलती हो सकती है, लेकिन उसे पूरे समुदाय से जोड़ना गलत है। इससे न सिर्फ धार्मिक शब्दों का गलत मतलब निकाला जाता है, बल्कि पत्रकारिता के नियमों का भी उल्लंघन होता है।
याचिका में जोर देकर कहा गया है कि ‘लव जिहाद’ की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। इसके बावजूद कुछ मीडिया समूह इसे एक समुदाय के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे समाज में तनाव और अशांति फैल रही है।
मारूफ ने बताया कि उन्होंने पहले पुलिस और अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद वे हाई कोर्ट पहुंचे। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जांच पूरी होने से पहले ही धार्मिक शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। इससे समाज में डर और नफरत बढ़ती है, जो देश की शांति के लिए खतरनाक है।
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