- अध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली और लखनऊ से बरेली की ओर आने वाले मुख्य मार्गों पर बनाये जाएं आलाहज़रत द्वार: मौलाना मो0 कैफ रज़ा ख़ान।
- आलाहज़रत के नाम से ही बरेली को दुनिया में जाना जाता है।: मौलाना मो0 कैफ रज़ा ख़ान।
- बरेली आने वाले मार्गों पर दरगाह आलाहज़रत को नज़रअंदाज़ करके बनाये जा रहे द्वार सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के अनुरूप नहीं।: मौलाना मो0 कैफ रज़ा खान।
- धार्मिक चिन्हों के स्थान पर यदि बरेली की पहचान सुर्मा, बाँस और ज़री आदि को महत्व दिया जाता तो हुकूमत की वोकल फॉर लोकल पॉलिसी आगे बढ़ती।
अध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमन्त्री महोदय के निर्देश पर कमिश्नर और बीडीए ने अध्यात्मिक सर्किट का जो खाका तैयार किया है उसमें दरगाह आलाहज़रत को पूरी तरह से नज़र अंदाज़ किया गया है।
इस संबन्ध में दरगाह उस्तादे जमन ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा आलाहजरत परिवार के सदस्य नबीरा-ए-आलाहजरत मौलाना मो0 कैफ रजा खान ने कहा है कि आलाहज़रत महान सूफी सन्त हुए हैं जिनके अनुयायी हिन्दूस्तान ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में बहुत बड़ी संख्या में पाये जाते हैं दरगाह आलाहज़रत सुन्नी-बरेलवी विचारधारा का केन्द्र है मुसलमानों की लगभग 80 प्रतिशत आबादी इसी विचारधारा को मानती है यही कारण है कि बरेली की पहचान आलाहज़रत के नाम से हिन्दुस्तान के साथ ही सम्पूर्ण विश्व में होती है।
आगे मौलाना ने कहा कि यदि हुकूमत की नियत साफ होती और वास्तव में अध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना मकसद होता तो बरेली में दरगाह आलाहज़रत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाता। उन्होंने का हुकूमत का यह कृत्य स्वयं हुकूमत की दो अहम पालिसी सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास तथा वोकल फॉर लोकल के विरूद्ध है। क्योंकि अध्यात्मिक पर्यटन बरेली में सबसे ज़्यादा दरगाह आलाहज़रत के कारण है। यह पर्यटकों के होटलों में ठहरने, रेलवे और एअरपोर्ट का सर्वे करके जाना जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हुकूमत अब हर चीज में धर्म का तड़का लगाना चाहती है प्रस्तावित पर्यटन सर्किट में आलाहज़रत के साथ ही बरेली की पहचान सुर्मा, बाँस फर्नीचर और ज़री को भी महत्व नहीं दिया गया है। उन्होंने लखनऊ तथा दिल्ली की ओर से आने वाले मुख्य मार्गों पर आलाहज़रत द्वार बनाने की माँग की।