नफीस शेरानी | लल्लनपोस्ट डॉट कॉम
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में मुस्लिम संगठनों ने लड़कियों के लिए शिक्षा का ऐसा प्रकाशस्तंभ बनाया है जो रेगिस्तान के बीच दूर से ही देखा जा सकता है।शिक्षा किसी भी समाज के विकास के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन मुस्लिम बस्तियों पर ‘शिक्षा का सूरज’ नहीं चमकता। और लड़कियों की शिक्षा तो दूर का सपना है।
लेकिन पिछले डेढ़ दशक में शेखावाटी में शिक्षा के लिए ऐसा आंदोलन चला है कि हर घर की लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं। शेखावाटी के गांवों और शहरों में हर दिन स्कूल परिसर के प्रशिक्षण गीतों से गुंजायमान रहता है। लड़कियां सेवा और भ्लाउइ की गीत गाती हैं । 15 साल पहले उनकी दुनिया घर की चार दीवारी तक ही सीमित थी। क्योंकि शिक्षा का रास्ता बहुत तंग था । अब एक से बढ़कर एक स्कूल हैं।
शबीना ऐसे ही एक स्कूल में शिक्षिका हैं। उन्होंने इस बदलाव को अपनी आंखों से देखा है। शबीना कहती हैं, पहले लड़कियां घर में ही रहती थीं। अब हर परिवार अपनी बेटियों को स्कूल भेजने लगा है। अच्छा स्कूल होने और फिर फीस न होने से भी लोगों को काफी आसानी हुई है।
वह कहती हैं कि हमने उन्हें अंग्रेजी में प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है ताकि वे दुनिया के साथ तालमेल बिठा सकें। साथ ही हम धार्मिक शिक्षा भी दे रहे हैं।
पहले लड़के और लड़कियों में फर्क होता था। अब इसमें कमी आई है। बेटियों को स्कूल तक लाने में सबसे ज्यादा सहयोग उनकी मां, दादी का रहा। दादी को पहले पोता चाहिए था, अब उन्हें अपनी पोतियों पर नाज है।
मोहसिना सीकर में 10वीं की छात्रा है। वह डॉक्टर बनना चाहती है। वह कहती हैं पहले स्कूल में सिर्फ लड़के ही जाते थे। अब लड़कियां भी शिक्षा हासिल कर अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं।
शेखावाटी रेगिस्तानी क्षेत्र का हिस्सा है जहां जीवन बहुत कठिन है। इसलिए लोग बिजनेस के सिलसिले में कभी मुंबई तो कभी खाड़ी देशों में जाते हैं। और जब उनके हाथ में धन आया, तब भी वह अपनी जमीन को नहीं भूले।
सीकर के वाहिद चौहान की तरक्की की चाह उन्हें मुंबई ले गई। लेकिन बेटियों की शिक्षा की ललक उन्हें बार-बार सीकर की ओर खींचती रही। करीब एक दशक पहले चौहान ने सीकर में लड़कियों के लिए एक स्कूल की स्थापना की, जो बेटियों की शिक्षा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
चौहान ने कहा शुरू में प्रतिरोध था, कुछ लोगों को लगा कि लड़कियां गलत दिशा में जा सकती हैं। लेकिन समय के साथ सब ठीक हो गया। आज लड़कियों को पढ़ते हुए देखकर मुझे बहुत खुशी होती है।
इस स्कूल में कोई फीस नहीं है। स्कूल यूनिफॉर्म भी मुफ्त है। स्कूल की प्रबंधन समिति के साजिद कहते हैं, ”हमारे समाज के एक बड़े तबके ने बहुत विरोध किया. शुरुआत में स्कूल में सिर्फ 27 लड़कियां थीं. आज यहां 3,000 लड़कियां पढ़ रही हैं. अब यह कॉलेज बन गया है।
उनका कहना है कि अब हम शिक्षा के लिए सरकार पर निर्भर नहीं हैं। सच्चर कमेटी का भी इंतजार नहीं किया। बेटियों को समान अधिकार देने के लिए समाज खुद खड़ा हुआ।
सीकर के आफताब कहते हैं, ‘हमारे समाज में एक बच्ची का टीचर बनना बहुत मुश्किल था। आज मेरी बेटी आर्किटेक्ट बनने जा रही है। यह कल्पना से परे है। हमें अपने ही घर में विरोध का सामना करना पड़ रहा था। पहले कुछ लोग बेटियों को प्राइवेट ट्यूशन देकर पढ़ाते थे, अब नियमित स्कूलों में भेज रहे हैं। यह एक बड़ा बदलाव है।
गांव में प्रवेश
शिक्षा का यह प्रकाश केवल शहरों तक ही सीमित नहीं है । यह गांवों तक पहुंच गया है। सीकर जिले के खेरवा गांव में सोफिया स्कूल एक मुस्लिम चलाते हैं . लेकिन प्रिंसिपल केसर सिंह हिंदू हैं।
शिक्षा में आए इस बदलाव पर जामिया अरबिया के हसन महमूद कासमी कहते हैं, ”इस डेढ़ दशक में मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई में बहुत अच्छा बदलाव आया है.” पहले समाज की स्थिति अच्छी नहीं थी, इस में उलमा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
शेखावाटी का फतेहपुर कस्बा भी लड़कियों की शिक्षा में पीछे नहीं रहा। जम्योताल व्यापारियों ने वहां चार स्कूल बनवाए। इस संस्था के युसूफ खोखर कहते हैं, ”बड़ी संख्या में लड़कियां शिक्षा लेने आ रही हैं. हमारा मानना है कि अगर एक लड़की सीखती है तो वह पूरी पीढ़ी को पढ़ाती है।
मोहम्मद हुसैन पठान पहले खाड़ी देशों में काम करते थे । लेकिन उन्हें लगा जैसे उनकी ज़मीन उन्हें कुछ करने के लिए बुला रही है। अब वह एक गांव में माध्यमिक विद्यालय चलाते हैं । उनके स्कूल में 350 लड़कियां पढ़ रही हैं।
एक छात्रा हिना शेख का कहना है कि पहले लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती थी, अब माता-पिता अपनी बेटियों की पढ़ाई को जरूरी समझते हैं।