Muslim

आदिवासी जनजातियों के आस्था, धार्मिक रीति रिवाज, विवाह की विविधताओं क्या तोड़ा जा सकता है?: मौलाना मो0 कैफ रजा खां कादरी।

Spread the love

दरगाह उस्तादे ज़मन ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष नबीरा-ए-आलाहज़रत मौलाना मो0 कैफ रज़ा खाँ क़ादरी ने एक ब्यान जारी करके कहा है कि समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट अथवा उसमे सम्मिलित किये जाने वाले मुख्य बिन्दु हुकूमत ने अभी तक स्पष्ट नहीं किये हैं ऐसे में जो लोग इसका विरोध या समर्थन कर रहें हैं वह जाने-अनजाने हुकूमत की मंशा के मुताबिक ही काम कर रहे हैं क्योंकि विविधताओं से भरे भारतीय परिवेष में इसका लागू किया जाना किसी भी स्थिति में संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि यह हुकूमत का चुनावी स्टंट है और लोग हुकूमत के झांसे में आ रहे हैं। आगे उन्होंने सवाल किया कि जब हमें यह मालूम ही नहीं है कि यू.सी.सी. क्या है? तो यह समक्ष से परे है कि हम इसका समर्थन या विरोध किस आधार पर कर रहे हैं?


मौलाना ने कहा कि भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म तथा जामियाँ हैं और प्रत्येक धर्म एवं जाति के अपने रीति-रिवाज हैं और आदिवासी जनजातियों में तो विवाह के रीति-रिवाज में विभिन्न रूप विद्यमान हैं जिनसे समाजशास्त्र के विद्यार्थी तथा शोधार्थी भलिभाँति परिचित हैं? तो क्या प्राचीन काल के इन आस्था, विश्वास, रीति-रिवाज तथा धार्मिक अनुष्ठान एवं कर्मकाण्ड को हुकूमत बदल पाएगी? इसलिए यू.सी.सी. मात्र एक कोरी कल्पना है जो किसी भी प्रकार से संभव नहीं।
मौलाना कैफ रज़ा ने कहा कि मुसलमान अल्लाह के कानून पर विश्वास करते आए हैं और हमेशा करते रहेंगे इसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि हुकूमत के बनाए कानून परिवर्तनशील होते हैं जो हुकूमत की सुविधानुसार समय-समय पर बदलते रहते हैं।


आगे उन्होंने कहा कि हुकूमत को यदि समानता ही करना है तो धार्मिक समानता से पहले समस्त नागरिकों के लिए शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं क्योंक निर्धनता के कारण गरीब का बच्चा धन के अभाव में उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता। महंगी कोचिंग से वंचित रहता है इसलिए प्रतियोगी परीक्षाओं तथा सरकारी सेवाओं में गरीब छात्र कम संख्या में ही सफल हो पाते हैं। समानता स्वास्थ्य के क्षेत्र में की जाए इलाज के अभाव में लोग अपनी जान गवाँ रहे हैं। लोग इलाज के लिए अपने गहने तथा जमीन और घर तक गिरवीं रख देते हैं तथा साहूकारों के चंगुल में फंसते हैं और मंहगा इलाज कराते-कराते सड़क पर आ जाते हैं। समानता करना ही है तो सरकारी सेवाओं में नियमित तथा अनियमित एवं संविदा कर्मचारियों के मध्य की जाए जहाँ समान शैक्षिक योग्यता तथा समान कार्य के उपरान्त वेतन में अप्रत्याशित अंतर देखा जा सकता है उदाहरणतः बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत नियमित शिक्षक को 12 माह 70 हजार से 1 लाख तक वेतनमान तथा अन्य भत्ते दिये जाते हैं वहीं उसी विद्यालय में कार्यरत शिक्षा मित्र को मात्र 10 हजार कोई भत्ता नहीं और मात्र 11 माह भुगतान होता है, जबकि दोनों की शैक्षिक योग्यता तथा कार्य एवं समयावधि समान है। यही हाल प्रत्येक विभाग में कार्यरत नियमित तथा अनियमित एवं संविदा कर्मचारियों में होता है।


हुकूमत के स्वच्छता अभियान को सफल बनाने वाले सफाई कर्मचारियों की पदोन्नति का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त भी सफाई कर्मचारी को पदोन्नति नहीं मिल सकती अर्थात सफाई कर्मचारी जीवन पर्यन्त सफाई कर्मचारी ही रहेगा भले ही उसकी शैक्षिक योग्यता कुछ भी हो। समानता का अधिकार क्या सफाई कर्मचारियों को नहीं है?

आगे मौलाना ने कहा कि यू.सी.सी. के बिन्दु अथवा ड्राफ्ट हुकूमत के द्वारा स्पष्ट होने के बाद अगर यह संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ करने वाला प्रतीत हुआ तो इसका विरोध मुसलमान ही नहीं बल्कि देश का प्रत्येक स्वाभिमानी नागरिक करेगा क्योंकि भारत में विभिन्न धर्मों तथा जामियों को मानने वाले लोगों को अपने धर्म के अनुसार रीति-रिवाज अपनाने तथा अपने धर्म तथा जाति के अनुसार जीवन यापन करने का अधिकार हमारे देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को देता है। इस धार्मिक आजादी को कोई छीन नहीं सकता।


Related Posts

यूपी: गाजियाबाद की आवासीय सोसायटी में उर्दू शिक्षक से दुर्व्यवहार, जबरन ‘जय श्री राम’ कहने को कहा।

नई दिल्ली: गाजियाबाद के क्रॉसिंग रिपब्लिक की एक आवासीय सोसायटी में मंगलवार (22

1 of 9

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *