नई दिल्ली: दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में क्षत्रिय परिषद (Kshatriya Parishad) द्वारा सम्राट मिहिर भोज जयंती के अवसर पर मध्यकालीन प्रतिहार वंश के स्वर्णिम इतिहास और वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर एक अकादमिक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस ऐतिहासिक आयोजन में प्रतिहार वंश के गौरवशाली अतीत, उनके योगदान और आधुनिक युग में समाज की समकालीन समस्याओं पर विचार-विमर्श किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत भारत की स्वतंत्रता संग्राम में क्षत्रिय समाज के योगदान पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन से हुई। इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से उपस्थित जनसमूह को क्षत्रिय समुदाय की देश की स्वतंत्रता में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका से अवगत कराया गया। इसके बाद, प्रतिहार इतिहास पर आधारित प्रमाणिक पुस्तकों जैसे शांता रानी शर्मा की “इम्पीरियल प्रतिहार ऑफ़ राजस्थान”, रेहमान अली की “प्रतिहार आर्ट इन इंडिया” और वीरेंद्र राठौड़ की “गुर्जरदेश” का प्रचार-प्रसार किया गया।
मंच पर मौजूद प्रमुख अतिथियों ने प्रतिहार वंश के ऐतिहासिक योगदान पर प्रकाश डाला और वर्तमान सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए लोकतांत्रिक उपायों पर चर्चा की। कार्यक्रम में IISC के स्कॉलर दिनेश चौहान ने EWS वर्ग में क्षत्रिय समाज की भागीदारी पर विचार रखे। वहीं, हार्वर्ड क्लब ऑफ इंडिया के पूर्व सचिव और “कटिहार टू केनेडी” के लेखक डॉ. संजय कुमार ने युवा पीढ़ी को इतिहास के प्रति जागरूक करने के रचनात्मक तरीकों पर जोर दिया और उच्च शिक्षा की महत्ता पर बात की।
बेनिट कोलमेन यूनिवर्सिटी के डीन संजीव सिंह ने शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट पर विचार रखे, जबकि न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मयंक सिंह ने समाज में आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के महत्व पर बल दिया। डॉक्टर यशपाल तंवर ने प्रतिहार सम्राटों के विशेष योगदान की सराहना करते हुए भगवान बुद्ध के समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर जोर दिया।
इसके अलावा, एनटीपीसी के पूर्व डायरेक्टर विनय कुमार ने सामाजिक सुधार और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूकता की आवश्यकता पर अपने विचार साझा किए। दिल्ली प्रदेश के ठाकुर पूरण सिंह टीम के अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने मानवाधिकार संरक्षण के महत्व पर जोर दिया।
सेमिनार में दिल्ली, एनसीआर, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश से आए कई विशिष्ट अतिथियों और छात्रों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में क्षत्रिय परिषद की रिसर्च टीम द्वारा “शंखनाद” मैगज़ीन का विमोचन किया गया, जिसके माध्यम से प्रतिहार इतिहास के प्रचार-प्रसार पर सहमति जताई गई।
कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों की भी सक्रिय भागीदारी रही, जिससे इस आयोजन का शैक्षणिक महत्व और बढ़ गया।