नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार ने 46 साल पुराने संभल दंगों की फाइल फिर से खोलने का आदेश दिया है। यह निर्णय संभल की जामा मस्जिद से जुड़े विवाद के बीच लिया गया है। 1978 के इन दंगों में 184 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन 2010 में सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया था।
नई जांच का आदेश और समयसीमा
“टाइम्स ऑफ इंडिया” के मुताबिक, 17 दिसंबर 2024 को एमएलसी श्रीचंद शर्मा द्वारा दंगों की पुनः जांच की मांग के बाद यह कदम उठाया गया। गृह सचिव सत्येंद्र प्रताप सिंह ने 6 जनवरी को संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई को सात दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। जांच का जिम्मा एडिशनल एसपी श्रीशचंद्र को सौंपा गया है, जबकि प्रशासन से एक अधिकारी को संयुक्त जांच के लिए नियुक्त करने को कहा गया है।
दंगों की पृष्ठभूमि
1976 में एक मस्जिद के मौलवी की हत्या के बाद संभल में सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई थी। दो साल बाद, 28 मार्च 1978 को होलिका दहन स्थल को लेकर तनाव बढ़ा, और अफवाहों के कारण दंगे भड़क उठे। दंगों में कई लोगों की जान गई और शहर में 30 दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा।
दंगों के दौरान की घटनाएं
व्यापारी बनवारी लाल ने अपने साले की हवेली में 24 लोगों को छिपाने की कोशिश की, लेकिन दंगाइयों ने ट्रैक्टर से गेट तोड़कर सभी को मार डाला। खुद बनवारी लाल की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई।
सरकारी भूमिका और राजनीतिक संदर्भ
1978 में यूपी और केंद्र, दोनों जगह जनता पार्टी की सरकार थी। मुख्यमंत्री राम नरेश यादव और गृह मंत्री राम सिंह थे। केंद्र में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह का नेतृत्व था। बीजेएस (भारतीय जनसंघ) के कई नेता, जैसे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी, केंद्र सरकार में मंत्री थे।
उस समय सरकारों ने विधानसभा और लोकसभा में दंगों पर चर्चा से परहेज किया। यूपी के तत्कालीन गृहमंत्री स्वरूप कुमार बख्शी ने 1982 में बताया कि 168 मामलों में 1,272 लोगों को नामजद किया गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में अधिकांश मामले बंद कर दिए गए।
फिर से जांच की आवश्यकता
2010 में सभी आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे। अब यूपी सरकार ने इस मामले की गहन जांच का आदेश दिया है, जिससे पीड़ितों को न्याय दिलाने की उम्मीदें फिर से जाग उठी हैं।