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इंडो इस्लामिक हेरिटेज सेंटर का पहला अन्तरराष्ट्रीय कार्यक्रम हुआ संपन्न।

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भारत-बांग्लादेश के प्रतिनिधियों का सम्मेलन, कट्टरता के प्रतिवाद, शिक्षा और जनसम्पर्क पर ज़ोर

नई दिल्ली। भारत और बांग्लादेश के बीच सांस्कृतिक और जनसम्पर्क से संबंधों को और गहरा किया जा सकता है। यह बात इंडो इस्लामिक हेरिटेज सेंटर (Indo Islamic Heritage Centre) के एक दिवसीय सम्मेलन में मुखर होकर सामने आई। कार्यक्रम का पहला सत्र ग़ालिब इंस्टीच्यूट और द्वितीय सत्र इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित किया गया।

पहला सत्र

इंडो-इस्लामिक हेरिटेज सेंटर (Indo Islamic Heritage Centre) और तंज़ीम उलामा ए इस्लाम की तरफ़ से नई दिल्ली की ग़ालिब इंस्टीच्यूट में शुक्रवार को आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बांग्लादेश इस्लामी फ्रंट के केंद्रीय संयुक्त सचिव अब्दुल रहीम ने कहाकि उनका दल इस्लामी फ्रंट सूफ़ी/बरेलवी राजनीतिक विचारधारा वाला दल है, जो समाज में अनेकता में एकता का संदेश देती है।
चटगांव से प्रकाशित बांग्लादेशी समाचार पत्र “दैनिक पुरबोदेश” के एसोसिएट एडिटर और सिटी कॉर्पोरेशन कॉलेज, चट्टोग्राम के प्रिंसिपल मोहम्मद अबू तालेब बेलाल ने कहाकि भारत के प्रति सूफी निष्ठाओं की यह स्थिति है कि बांग्लादेश के लोग अजमेर और दिल्ली में सूफ़ी दरगाहों में अवश्य जाना चाहते हैं। यह संबंध और मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता है। भारत की तंज़ीम उलामा ए इस्लाम के संस्थापक अध्यक्ष मुफ़्ती अशफ़ाक हुसैन कादरी ने कहाकि भारत के सूफ़ी सिलेबस की मदद से हम बांग्लादेश की मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहाकि दोनों देशों की समस्या कट्टरता है और इससे निपटने के लिए हमें एक ऐसे पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जो उदारता और इस्लाम की सूफ़ी व्याख्या को प्रश्रय दे।

द्वितीय सत्र

शाम को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित सेमिनार में प्रोफ़ेसर अख्तर उल वासे ने कहाकि भारत के सूफ़ी मदरसों में दुनिया के कई देशों के बच्चे पढ़ते हैं, आज बांग्लादेश की आवश्यकता है कि वहाँ के बच्चों को भी भारत के सूफ़ी मदरसों में दाखिला दिलवाया जाए। यह लोग दोनों देशों के बीच शांति राजदूतों की तरह काम करेंगे। बांग्लादेश के सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र और युवा ऑर्गेनाइजर इमरान हुसैन तुसार ने कहाकि बांग्लादेश कट्टरता की चुनौती से गुजर रहा है। भारत और बांग्लादेश के बीच बेहतर और मजबूत संबंध रहे हैं और ये संबंध आज के नहीं है, बल्कि 1971 से ये संबंध हर स्तर पर बेहतर हैं। यह सम्मेलन संबंधों और विश्वास निर्माण को और बढ़ावा देने में मदद करेगा। हम आज भी भारत के सभी सहयोगों के लिए शुक्रगुजार हैं और यह सहयोग और अधिक बढ़ना चाहिए।

भारत में पत्रकारिता के प्रोफेसर डॉ. अखलाक उस्मानी ने कहाकि भारत की नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में दोनों देशों का कारोबार एक ही साल में दुगुना हुआ है। यह दोनों देशों के बीच पनप रहे प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। इसमें अवामी लीग की सरकार ने भी बहुत मदद की है। भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए स्थिर बांग्लादेश और सहयोग की आवश्यकता है।
मोहम्मद अबू तालेब बेलाल ने कहाकि बांग्लादेश में अगर कट्टरवादी ताकतें सत्ता में आ जाती हैं तो देश के भविष्य के लिए बेहतर नहीं होगा। उन्होंने कहाकि बांग्लादेश में सूफ़ी समुदाय बहुमत में है लेकिन सत्ता में उसकी भागीदारी बहुत अच्छी नहीं है, यह स्थिति भी बदलनी चाहिए ताकि बहुमत की सूफ़ी विचारधारा को प्रश्रय दिया जा सके। धर्मगुरू सैयद मुहम्मद कादरी ने कहाकि बांग्लादेश में योग्यताओ की कमी नहीं है और दोनों देशों के बीच जनता से जनता के बीच सम्पर्क को और अधिक मज़बूत बनाया जाए ताकि सहयोग को विस्तार दिया जा सके।


जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अब्दुल वाहिद नज़ीर ने कहा कि भारत ने बांग्लादेश को हर मोर्चे पर सहयोग दिया है और दोनों देश आपस में मिलकर तरक्की कर सकते हैं।

इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, धार्मिक नेताओं और अन्य बुद्धिजीवियों को एक साथ लाना था, ताकि भारत और बांग्लादेश में कट्टरपंथियों द्वारा धार्मिक उग्रवाद और आतंकवाद से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा और उसके समाधान पर प्रकाश डाला जा सके। कार्यक्रम का संचालन आईआईएचसी के रिसर्च फैलो ज़फ़रूद्दीन बरकाती ने किया।

दोनों सत्रों में कई बिन्दुओं पर चर्चा हुई जिसमें प्रमुख है:

  1. भारत के सूफ़ी मदरसों में बांग्लादेशी बच्चों की तालीम की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वह भारतीय सूफ़ी मदरसों के प्रबंधन और पाठ्यक्रम से वाकिफ हो सकें।
  2. भारत के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थियों के बेहतर पर्यावास का प्रयास होना चाहिए ताकि वह भी बांग्लादेश की बेहतर छवि लेकर लौटें और बांग्लादेश के शिक्षा पर्यटन को बढ़ावा मिले।
  3. बांग्लादेश के मदरसों और शैक्षणिक संस्थाओं के लिए तंज़ीम उलामा ए इस्लाम और इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर को मिलकर नए दर्से निज़ामी को तरतीब देना चाहिए ताकि बांग्लादेश के सूफ़ी मदरसों की पाठ्यक्रम में मदद की जा सके।
  4. बांग्लादेश से भारत के सूफ़ी सर्किट के लिए बस मार्ग से वीज़ा और यात्रा को सुगम बनाया जाना चाहिए ताकि ढाका से कोलकाता, अम्बेडकरनगर, लखनऊ, देवा शरीफ़, बहराइच, दिल्ली, पाकपतन से अजमेर और इसी रूट से वापसी के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए दोनों देशों को पर्यटन कम्पनियों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
  5. बांग्लादेश और भारत के विद्यार्थियों के आने जाने के लिए लगातार सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर पर्यटन की आवश्यकता है ताकि दोनों देशों के आम लोगों के बीच विश्वास को बढ़ाया जा सके।
  6. बांग्लादेश से आने वाले मरीजों की देखभाल के लिए भारत के अस्पतालों में सूचना पट्ट, वेबसाइट की डिटेल बंगाली भाषा में और अस्पताल स्टाफ में बांग्ला भाषा की ट्रेनिंग आयोजित करवाई जानी चाहिए।

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