सुप्रीम कोर्ट ने उर्दू भाषा को लेकर एक अहम फैसले में कहा कि “उर्दू भारत की जमीन से जन्मी भाषा है, इसे धर्मों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।” कोर्ट ने हिंदी को हिंदुओं और उर्दू को मुसलमानों से जोड़ने के लिए औपनिवेशिक शासन को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि यह विभाजन “सार्वभौमिक भाईचारे की अवधारणा के खिलाफ” है। यह टिप्पणी महाराष्ट्र के अकोला जिले के पातुर नगर परिषद भवन के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई।
मामले की पृष्ठभूमि यह है कि पातुर की पूर्व पार्षद वर्षताई संजय बागड़े ने 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि महाराष्ट्र लोकल ऑथोरिटी (राजभाषा) एक्ट, 2022 के तहत साइनबोर्ड पर उर्दू का उपयोग गैरकानूनी है। उन्होंने मांग की थी कि केवल मराठी का ही प्रयोग किया जाए। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बाद बागड़े ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
15 अप्रैल को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को वैध ठहराया। कोर्ट ने कहा कि-
“उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है और संविधान के तहत इसे मराठी के समान दर्जा प्राप्त है।” न्यायमूर्ति धूलिया ने जोर देकर कहा,
“भाषा का मूल उद्देश्य संचार है। यहां उर्दू का इस्तेमाल सिर्फ लोगों तक सूचना पहुंचाने के लिए किया गया है, जिसे 1956 से जारी प्रथा के आधार पर स्वीकार किया जाना चाहिए।”
अपने फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “उर्दू विदेशी भाषा नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी में पली-बढ़ी भाषा है। इसे किसी धर्म विशेष से जोड़ना गलत है।” कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अंग्रेजों ने जानबूझकर हिंदी और उर्दू को हिंदू-मुस्लिम पहचान से जोड़कर समाज में विभाजन पैदा किया, जो आज भी कुछ लोगों की मानसिकता में मौजूद है।
इससे पहले, 2020 में बागड़े ने पातुर नगर परिषद में उर्दू के इस्तेमाल के खिलाफ आपत्ति जताई थी, लेकिन परिषद ने इनकार करते हुए कहा था कि “स्थानीय आबादी उर्दू को आसानी से समझती है और यह प्रथा दशकों से चली आ रही है।” कोर्ट ने इसी तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि भाषा को लेकर पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर सांस्कृतिक विविधता को अपनाना चाहिए।
यह फैसला उस समय आया है जब देशभर में भाषा और धर्म को लेकर चल रही बहसों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एकता और साझा विरासत पर जोर दिया है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि भाषाओं को धर्म से जोड़ने की कोशिशें राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक हैं और इन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए।