जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। इस कायरतापूर्ण घटना में 27 निर्दोष पर्यटकों की मौत हो गई, जबकि सैकड़ों घायल हुए। लेकिन इस त्रासदी के बीच स्थानीय कपड़ा व्यापारी नजाकत अली की वीरता और मानवता की मिसाल ने सभी को प्रेरित किया। उन्होंने अफरातफरी के बीच 11 पर्यटकों को सुरक्षित बचाया, जिसमें छत्तीसगढ़ के चिरमिरी से आए चार परिवार शामिल थे।
गोलियों की आड़ में बन गए ‘रक्षक’
हमले के समय छत्तीसगढ़ के कुलदीप स्थापक, शिवांश जैन, हैप्पी बधावान और अरविंद्र अग्रवाल अपने परिवारों के साथ बैसरन घाटी में घूम रहे थे। अचानक गोलियों की आवाज़ से माहौल खौफनाक हो गया। भगदड़ में फंसे लोग जान बचाने को इधर-उधर भागने लगे। तभी नजाकत अली ने अपनी समझदारी से काम लेते हुए परिचित पर्यटकों को निकटवर्ती लॉज में पनाह दी। बीजेपी पार्षद पूर्वा स्थापक (कुलदीप की पत्नी) भी अपने तीन बच्चों के साथ घटनास्थल पर मौजूद थीं, जिन्हें नजाकत ने सुरक्षित निकाला।
परिचय का विश्वास बना जीवनदायी
नजाकत हर साल चिरमिरी में कपड़े बेचने जाते हैं, जहाँ इन परिवारों से उनकी दोस्ती हुई। यही रिश्ता पहलगाम में जान बचाने का सहारा बना। नजाकत ने बताया, “मैंने सोचा, इन्हें खोना नहीं चाहिए।” उन्होंने न केवल सभी को लॉज में छिपाया, बल्कि सेना की मदद से होटल तक पहुँचाने में भी अहम भूमिका निभाई।
परिजनों ने जताया आभार
कुलदीप के मामा राकेश परासर ने बताया, “नजाकत ने हमारे बच्चों समेत सभी को बचाया। उनका साहस अद्भुत था।” शिवांश जैन की माँ ने कहा, “अगर नजाकत न होते, तो हमारा बेटा, बहू और पोता शायद न बच पाते।”
इंसानियत की जीत, सांप्रदायिकता की हार
कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा घटना को सांप्रदायिक रंग देने के प्रयासों के बीच नजाकत अली की मुस्लिम पहचान और हिंदू परिवारों को बचाने की कोशिश ने साबित किया कि कश्मीरियत आज भी ज़िंदा है। उनकी बहादुरी ने यह संदेश दिया कि धर्म से ऊपर इंसानियत होती है। आज पूरा देश नजाकत के साहस को सलाम कर रहा है, जिसने अंधेरे में उम्मीद की मशाल जलाई।